तीन महीने पहले, नीतीश को पता चला कि पीएम मोदी की ‘सबसे बड़ी रणनीति’ क्या थी?

पटक: लालू यादव तक को पता नहीं था कि नीतीश कुमार ने पीएम नरेंद्र मोदी की रणनीति को तीन महीने पहले ही भांप लिया था। नीतीश को तीन महीने पहले ही पता चला था कि केंद्र अब क्या प्रस्ताव देगा। नीतीश कुमार ने अब से लगभग तीन महीने पहले पहली बार कहा कि चुनाव कभी भी हो सकता है। इस साल भी चुनाव होंगे, यह आश्चर्य की बात नहीं है। बाद में बिहार दौरे पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी समय से पहले चुनाव की बात कही। इसके बाद से ही कयास लगाए जा रहे हैं कि केंद्रीय सरकार चुनावों को समय से पहले कर सकती है। केंद्र सरकार की इच्छा है कि संसद में “वन नेशन, वन इलेक्शन” का बिल पारित किया जाए, जो हाल ही में बहुत चर्चा में है। यह बिल संसद के मौजूदा विशेष सत्र में पेश होने पर संदेह है। भी, चुनाव आयोग ही समय पूर्व चुनाव की जानकारी दे सकता है।

इसी साल 14 जून को बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि चुनाव समयपूर्व होने की जरूरत नहीं है। पूर्व में भी हो सकता है। अधिकारी बिहार में शुरू की गई योजनाओं को जल्दी से पूरा करें। हमें जनता को बताना होगा कि हमने ऐसा किया है। लेकिन नीतीश ने इसे संदेहपूर्ण ढंग से कहा था। नीतीश कुमार ने “वन नेशन, वन इलेक्शन” का मुद्दा उठाते हुए इसे और अधिक स्पष्ट कर दिया। उनका कहना था कि आप चाहें तो चुनाव कर सकते हैं। हम लोग इसके लिए हमेशा तैयार रहते हैं। हमें कोई आपत्ति नहीं है कि लोकसभा के साथ बिहार विधानसभा चुनाव भी हों। केंद्रीय सरकार का ही अधिकारक्षेत्र है। हाल ही में अमित शाह ने अपनी बिहार यात्रा के दौरान इसमें यह कहा कि बिहार में चुनाव कभी भी हो सकते हैं।

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नीतीश का सूचना तंत्र मजबूत और अनुभवपूर्ण है।
नीतीश कुमार का राजनीतिक करियर काफी समय से चल रहा है। उनके आकलन-अनुमान के तीन मूल्य हो सकते हैं। तीन कारण हैं: पहला, उनका लंबे सियासी अनुभव; दूसरा, उनका मजबूत सूचना तंत्र; और तीसरा, उनके भाजपा नेताओं से अभी भी अच्छे संबंध हैं। भाजपा नेता शायद ही उन्हें यह जानकारी दी हो। या शायद विपक्ष के अन्य दल को कोई नई खिचड़ी नहीं पता होगी। जेडीयू एनडीए से अलग हो जाने के बावजूद हरिवंश, जेडीयू के राज्यसभा सदस्य, के उपसभापति बने रहने पर नीतीश कुमार की सूचना प्रणाली का प्रमाण है। यहां तक कि जेडीयू ने विरोधी गठबंधन I.N.D.I.A. को संसद के नए भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने का फैसला किया, लेकिन जेडीयू के राज्यसभा सदस्य हरिवंश ने कार्यक्रम में शामिल होकर महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई। इसलिए हरिवंश भाजपा में नीतीश कुमार के लिए दृढ़ रहें और उधर की जानकारी भी देते रहें।

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नीतीश कुमार ने बीजेपी के एमएलसी और नरेंद्र मोदी-अमित शाह के करीबी माने जाने वाले संजय मयूख के घर छठ पूजा का भोजन किया। नीतीश कुमार ने G-20 समिट के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की डिनर पार्टी में शामिल होने के अलावा पीएम नरेंद्र मोदी के साथ खुशी से दिखाई भी दी। जब दो नेता एकत्र होते हैं, जाहिर है कि वे सिर्फ एक दूसरे का हाल-चाल पूछेंगे। राजनीति भी विशिष्ट है। ऐसे में नीतीश को केंद्र की भाजपानीत सरकार के निर्णयों का पता होना असंभव है।

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भाजपा वास्तव में समय से पहले चुनाव कराएगी?
अब सवाल उठता है कि समय से पहले चुनाव और वन राज्य, वन चुनाव की चर्चा सिर्फ झूठ है या इसमें कोई सच्चाई भी हो सकती है। भाजपा को विपक्षी दलों की एकता को देखते हुए मुश्किल हालात का सामना करना पड़ा है, लेकिन भाजपा भी अपनी छवि को बेहतर बनाने में लगी हुई है। G 20 ने वैश्विक स्तर पर भाजपा को नई पहचान बनाने में मदद की है। आर्थिक रूप से भारत की समृद्धि को अब दुनिया के बड़े देश भी स्वीकारने लगे हैं। कश्मीर में धारा 370 हटाने और अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के अपने वादे को भाजपा ने पूरा कर दिया है। प्रधानमंत्री विश्वकर्म योजना के तहत भाजपा ने पसमांदा मुसलमानों पर भी डोरे डाल दिए हैं। संसद का नया भवन बनने और महिला आरक्षण बिल का श्रेय भी अब भाजपा के खाते में ही जाता दिख रहा है। विपक्षी गठबंधन के नेताओं की सनातन पर विवादित टिप्पणी भी भाजपा के अनुकूल है। इसलिए कि इसी बहाने उसे हिन्दू वोटों को पोलराइज करने में सहूलियत होगी। भाजपा को भी लग रहा होगा कि तवा गर्म है। इसलिए समय से पहले चुनाव कराने का भाजपा फैसला ले ले तो कोई आश्चर्य नहीं।

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तो क्या लोकसभा के साथ ही होंगे विधानसभा चुनाव
हालांकि इस सवाल का जवाब तत्काल देना मुनासिब नहीं, लेकिन अगर वन नेशन, वन इलेक्शन की अवधारणा को जन-जन तक पहुंचाने में भाजपा कामयाब हो जाती है तो विधानसभा के चुनाव भी लोकसभा के साथ ही हो सकते हैं। भाजपा यही समझाने की कोशिश करेगी कि एक साथ दोनों चुनाव होने पर समय, श्रम और अर्थ की कितनी बचत होगी। पहले ऐसा होता भी रहा है। साल 1967 तक तो दोनों चुनाव एक साथ ही होते रहे हैं। नीतीश कुमार और अमित शाह ने बिहार विधानसभा के चुनाव समय से पहले और एक साथ होने की बात कही है। बिहार के अलावा अगर दूसरे राज्यों में भी विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ नहीं होते हैं तो इसके लिए एक ही रास्ता है। नीतीश कुमार यदि समय से पहले विधानसभा भंग कर देते हैं तो चुनाव का रास्ता आसान हो जाएगा। जिस तरह विपक्षी गठबंधन में बाद के दिनों में नीतीश कुमार के साथ सलूक होता रहा है, उससे उनके मन में नाराजगी और निराशा स्वाभाविक है। ऐसे में एक संभावना ये भी है कि वे एक बार फिर एनडीए के साथ हो जाएं, हालांकि ये सिर्फ एक कयास है। कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की जीत को विपक्ष ने अपनी कामयाबी मानना शुरू कर दिया और एकता के प्रयास तेज किए, उससे भाजपा को भी भय है। इसी साल पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। कांग्रेस की रणनीति किसी भी तरह इन राज्यों में विधानसभा चुनाव जीतने की होगी। अगर विपक्ष इसमें कामयाब हो जाता है तो जनता पर साइकोलॉजिकल असर पड़ सकता है और लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए संकट बढ़ जाएगा। इसलिए नीतीश कुमार और अमित शाह यह कहते हैं कि समय पूर्व या एक साथ लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हो सकते हैं तो इसे झटके में खारिज नहीं किया जा सकता।

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