दिल्ली को मिलेगा नया सचिवालय, इन 4 स्थानों पर हो रहा मंथन, PPP मॉडल पर बनेगा प्रोजेक्ट

दिल्ली सरकार नया सचिवालय बनाने की योजना पर काम कर रही है। राजघाट, खैबर पास, आईटीओ और इंद्रप्रस्थ एस्टेट चार संभावित स्थानों में शामिल हैं। प्रोजेक्ट PPP मॉडल पर बनेगा।

दिल्ली सरकार राजधानी में नया सचिवालय बनाने की तैयारी में है। इसके लिए चार संभावित स्थानों की पहचान कर ली गई है। लोक निर्माण विभाग (PWD) मंत्री प्रवेश साहिब सिंह वर्मा ने बताया कि जिन जगहों पर विचार हो रहा है, उनमें से जिस पर सहमति बनेगी, वहीं पर नया सचिवालय तैयार किया जाएगा। सरकार इस परियोजना को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल के तहत विकसित करना चाहती है।

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चार संभावित स्थानों पर विचार

PWD मंत्री प्रवेश वर्मा के अनुसार दिल्ली सरकार जिन चार प्रमुख स्थानों पर नए सचिवालय के निर्माण पर विचार कर रही है, वे निम्नलिखित हैं:

  1. राजघाट थर्मल पावर प्लांट (Rajghat Thermal Power Plant):
    यह स्थान वर्षों से बंद पड़ा है और लगभग 18 एकड़ में फैला हुआ है। यहां हाई-राइज़ बिल्डिंग बनाकर सचिवालय तैयार किया जा सकता है। जमीन का लगभग 70% हिस्सा दिल्ली सरकार के पास है, जबकि बाकी डीडीए के अधीन आता है।

  2. खैबर पास (Khyber Pass – सिविल लाइंस):
    विधानसभा के पास स्थित इस स्थान को हाल ही में अतिक्रमण से मुक्त कराया गया है। लोकेशन की संवेदनशीलता और निकटता के चलते यह भी एक मजबूत विकल्प माना जा रहा है।

  3. आईटीओ स्थित पीडब्ल्यूडी मुख्यालय (PWD HQ at ITO):
    केंद्र में स्थित यह स्थान लॉजिस्टिक रूप से सुविधाजनक है और सरकारी विभागों की नज़दीकी इसे एक व्यवहारिक विकल्प बनाती है।

  4. डब्ल्यूएचओ भवन के पास इंद्रप्रस्थ एस्टेट (Indraprastha Estate near WHO Building):
    यहां एक पावर प्लांट था, जो अब बंद हो चुका है। इस स्थान पर सचिवालय बनाने की संभावना भी तलाशी जा रही है।

PPP मॉडल से होगा निर्माण

सरकार इस परियोजना को PPP (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल पर विकसित करने की योजना बना रही है। अधिकारियों के अनुसार इससे न केवल निर्माण की लागत में भागीदारी होगी, बल्कि लंबे समय में लागत की वसूली भी आसान हो सकेगी। इससे सरकारी खजाने पर सीधा बोझ नहीं पड़ेगा।

अंतिम फैसला जल्द

अधिकारियों का कहना है कि अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं हुआ है। इन चार विकल्पों के साथ-साथ अन्य स्थानों पर भी मंथन जारी है। मेट्रो कनेक्टिविटी, सुरक्षा, स्पेस और भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया जाएगा।

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