सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर पंचतत्व में विलीन, नम आंखों से दी अंतिम विदाई

सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का निधन आज ब्रीच कैंडी अस्तपाल  में कोरोना संक्रमण से जंग लड़ते हुए 92 साल की उम्र में हो गया. पिछले 29 दिनों से वह ब्रीच कैंडी अस्तपाल में भर्ती थीं और उनकी स्थिति नाज़ुक बानी हुई थी. लता मंगेशकर के निधन पर दो दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया है. इस दौरान राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा. लता मंगेशकर का पार्थिव शरीर घर पहुंच चुका है. उनका अंतिम संस्‍कार  रविवार को ही मुंबई के शिवाजी पार्क  में शाम 6:30 बजे राजकीय सम्‍मान के साथ किया गया ।

कुछ लोग जीते जी किंवदंती बन जाया करते हैं. उनके अमर होने के संकेत पूरी दुनिया को मिलते रहते हैं. देश-विदेश की विभिन्न भाषाओं में एक हजार से भी अधिक गानों को स्वर देने वाली ‘स्वर कोकिला’ के नहीं रहने पर इस तरह के बहुत से रिकॉड उनके नाम स्पष्टतः दिखाई देंगे. रोचक यह भी है कि वह सहज ही किस तरह आम से खास और खास से आम होती गईं. इस सिलसिले में वह हर खास-ओ-आम के करीब भी रहीं.

 

हम बात उन कुछ प्रसंगों की कर रहे हैं, जहां लता मंगेशकर नाम के एक हाड़-मांस के पुतले को कुछ खास लोग देखते-सुनते समय क्या सोचते रहे. यह जरूर था कि हमारे-आप जैसे उस शरीरधारी को देवतुल्य भी मान लिया गया. तलत महमूद ने तो कहा भी था कि सरस्वती और लक्ष्मी दोनों एक साथ कम ही रहा करती हैं. लता शायद इन दोनों के मेल से अवतरित तीसरी देवी हैं.

 

लता जी को देवी न भी मानें, तो भी वह विशिष्ट इनसान जरूर थीं. यह तो देश-दुनिया को पता है कि चीन के साथ 1962 के युद्ध के बाद 1963 में सैनिकों के बीच लताजी ने ‘ऐ मेरे वतन के लोगों! जरा आंख में भर लो पानी’ गाकर सुनाया तो वहां मौजूद अन्य लोगों के साथ प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आंखें भी भर आईं थीं. निश्चित ही वह माहौल गीत के शब्दों के साथ लता मंगेशकर के सुर की संगति से उत्पन्न हुआ था.

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