क्या है स्पेशल मैरिज एक्ट, जानते हैं इसके बारे में

हमारे देश में शादी एक पवित्र बंधन माना जाता है। यूं तो सामाजिक तौर पर शादी एक सामूहिक समारोह है और हमारे अपनों की मौजूदगी में इस बंधन को मान्यता प्राप्त हो जाती है। परन्तु अगर बात करें शादी की मान्यता की तो उसे पंजीकृत कराने पर ही वे पूरी तरह से मान्य होती है। शादी की मान्यता के लिए हमारे संविधान में एक एक्ट भी है।

स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 में भारत की संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जिसमें भारत के लोगों और विदेशों में सभी भारतीय नागरिकों के लिए विवाह पंजीकरण का प्रावधान है। इस एक्ट के तहत विवाह करने वालों का धर्म कुछ भी हो विवाह पंजीकरण के लिए वह मायने नहीं रखता है। यह एक्ट भारत के सभी राज्यों मे मान्य है, जम्मू कश्मीर को छोड़कर।

शादी पंजीकृत कराने के लिए जिसदिन आप शादी करना चाहते हैं उससे 45 दिन पहले आवेदन करना आवश्यक है। रजिस्ट्रार ऑफिस में तीन लोगों की मौजूदगी में लिए जरूरी दस्तावेज साइन करके शादी को पंजीकृत कराया जा सकता है। शादी पंजीकृत कराने के लिए दोनों पक्षों का कोई अन्य विवाह वैध नहीं होना चाहिए। दोनों की आयु, शादी के लिए निर्धारित आयु जितनी होनी चाहिये। यही नहीं दोनों का मानसिक रूप से पूरी तरह स्‍वस्थ होना भी अनिवार्य है जिससे वह इस निर्णय को पूरी तरह सोच समझकर ले सके।

कोर्ट मैरिज में शपथ समारोह विशेष विवाह अधिनियम -1954 के अनुसार विवाह रजिस्ट्रार के समक्ष तीन गवाहों की उपस्थिति में किया जाता है, उसके बाद सरकार द्वारा नियुक्त विवाह रजिस्ट्रार द्वारा सीधे कोर्ट मैरिज सर्टिफिकेट जारी किया जाता है।

विवाह संबंधी एक्‍ट सबसे पहलेक्‍ट हेनरी सुमनेर मेन ने पहली बार 1872 का अधिनियम पेश किया, जो  नागरिक विवाह कानून के तहत किसी भी व्यक्ति से शादी करने की अनुमति देगा। यह अंतर्जातीय और अंतर-धार्मिक विवाहों में लागू होने के उद्देश्य से बनाया गया।  विधेयक को स्थानीय सरकारों और प्रशासकों के विरोध का सामना करना पड़ा, जो मानते थे कि यह वासना पर आधारित विवाहों को प्रोत्साहित करेगा, जो अनिवार्य रूप से अनैतिकता की ओर ले जाएगा।

विशेष विवाह अधिनियम, 1954 ने पुराने अधिनियम,1872 का स्थान लिया।

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