Women’s Day 2022: बेहद गौरवशाली इतिहास है भारतीय नारी के शौर्य का…

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस दुनियाभर में महिलाओं को सम्मान, समानता, अधिकार और उनके राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक सरोकार पर बल देने के लिए मनाया जाता है। देश में आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में इस दिवस का एक अलग ही महत्व है। अगर हम और भी पहले चलें तो हमारी प्राचीन परंपरा नारी के सम्मान पर हमेशा से बल देती रही है। वैदिक काल में स्त्री सम्मान की स्थिति यह थी कि बिना उनकी उपस्थिति के कोई कार्य पूरा नहीं होता था।
अथर्ववेद का एक प्रचलित श्लोक है- यत्र नार्यस्तु पूच्यन्ते रमन्ते तत्र देवता, यत्रैतास्तु न पूच्यन्ते सर्वास्तत्राफला क्रिया अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, उसे सम्मान दिया जाता है वहां देवता विचरण करते हैं, और जहां उसके प्रति अनादर का भाव होता है, वहां किसी भी तरह के या सभी तरह के कर्म निष्फल होते हैं। नारी सम्मान की यह शृंखला देवी सीता या मां पार्वती की कथाओं से गंगा, सावित्री, कुंती, द्रौपदी, गार्गी, मैत्रेयी, शकुंतला आदि के रूप में हर समय, हर काल में विद्यमान रही, पर अफसोस की बात यह है कि स्त्री के इस सम्मान को धीरे-धीरे भुलाने की कोशिश की गई।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, स्वाधीनता के अमृत महोत्सव वर्ष में इन्हीं में से बहुत सी महिला स्वाधीनता सेनानियों को याद करने का एक सुअवसर देता है, उदाहरण के लिए जानकी अति नहप्पन को ही देखें, जो बाद में जानकी देवर के नाम से जानी गईं, मलाया के एक संपन्न तमिल परिवार में पल-बढ़ और पढ़ रही थीं। वह जब मात्र 16 वर्ष की थीं, तब उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक अपील सुनी, जिसमें उन्होंने भारतीयों से यह अपील की थी कि वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जो कुछ भी बन पड़े, सहयोग करें। जानकी ने अपनी सोने की बालियां उतारकर दान में दे दीं और पिता की आपत्ति के बावजूद भारतीय राष्ट्रीय सेना की रानी झांसी रेजिमेंट में शामिल हो गईं। विलासिता में पली-बढ़ी, जानकी पहले तो सेना के जीवन की कठोरता के अनुकूल नहीं हो सकीं, पर बाद में धीरे-धीरे उन्हें सैन्य जीवन की आदत हो गई और रेजिमेंट में उनका करियर आगे बढ़ता गया।

Exit mobile version