Navratri Havan 2025: चैत्र नवरात्रि में हवन करने का समय क्या है? विधि, मंत्र, सामग्री सूची और शुभ मुहूर्त जानें

Navratri Havan 2025: नवरात्रि में हवन व कन्या पूजन का विशेष महत्व है। जानें नवरात्रि में कब किया जाता है व विधि-
Navratri Havan: चैत्र नवरात्रि जल्द ही समाप्त हो जाएगा। नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। कन्या पूजन और हवन का विशेष महत्व नवरात्रि की अष्टमी व नवमी तिथि में है। कुछ लोग अष्टमी और कुछ नवमी को हवन करते हैं। नवरात्रि में हवन व कन्या पूजन के बाद ही व्रत का पूरा फल मिलता है। 5 अप्रैल 2025, शनिवार को चैत्र नवरात्रि की महाष्टमी होगी। 6 अप्रैल 2025, रविवार को रामनवमी मनाया जाएगा। चैत्र नवरात्रि में अष्टमी व नवमी पर हवन करने के लिए मुहूर्त, विधि और आवश्यक सामग्री का पता लगाएं-
अष्टमी पर हवन के शुभ मुहूर्त-
ब्रह्म मुहूर्त- 04:35 ए एम से 05:21 ए एम
प्रातः सन्ध्या- 04:58 ए एम से 06:07 ए एम
अभिजित मुहूर्त- 11:59 ए एम से 12:49 पी एम
विजय मुहूर्त- 02:30 पी एम से 03:20 पी एम
नवमी
राम नवमी पर हवन का शुभ मुहूर्त-
ब्रह्म मुहूर्त- 04:34 ए एम से 05:20 ए एम
प्रातः सन्ध्या- 04:57 ए एम से 06:05 ए एम
अभिजित मुहूर्त- 11:58 ए एम से 12:49 पी एम
विजय मुहूर्त- 02:30 पी एम से 03:20 पी एम
हवन के लिए सामग्री: हवन में कुंड, नीम, पंचमेवा, आम की लकड़ी, आम के पत्ते, सूखा नारियल, शहद, गूलर की छाल, चंदन की लकड़ी, कलावा, घी, फूल, कपूर, तिल, अक्षत, पान के पत्ते, गाय का घी, सुपारी, लौंग और नवग्रह की लकड़ी शामिल करना चाहिए।
हवन विधि: पहले एक साफ स्थान पर हवन कुंड रखें। हवन कुंड पर एक स्वास्तिक बनाकर कलावा बांधें। आम की लकड़ियों और कपूर को जलाएं। तिल, जौ, चावल और अन्य हवन सामग्री के साथ घी को मंत्रों के साथ आहुति दें। पूर्ण आहुति में नारियल में घी, पान, सुपारी, लौंग, जायफल व प्रसाद भरकर हवन कुंड में समर्पित करें। हवन के बाद भगवान गणेश व मां दुर्गा की आरती करें।
हवन के मंत्र:
ऊँ आग्नेय नम: स्वाहा
गणेश कृपा: स्वाहा
नम: नवग्रहाय स्वाहा
नमः सर्व देवताय: स्वाहा
ऊं भगवते नम: स्वाहा
नमः विष्णु: स्वाहा
ऊं शिवाय नम:
ऊँ दुर्गाय नम: स्वाहा
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै
ऊं महाकालिकाय नम:
नमः भैरवाय: स्वाहा
मंगलाकाली जयंती, भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहास्वधा नमस्तुति स्वाहा
ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शान्ति करा भवंतु स्वाहा।
ॐ दुं दुर्गायै नमः स्वाहा
ॐ श्रीं ह्रीं दुं दुर्गायै नमः स्वाहा।
ॐ दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै। ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रा सततं नमः ।। स्वाहा।