महाराजा भूपिंदर सिंह के खोज हुए हार का विवाद

भारत के राजा महाराजाओं की शानो शौकत के किस्से आज भी मशहूर है। महाराजा अपने धन को प्रदर्शित करने से कभी नहीं डरते थे आभूषण और रत्नों सी जड़े जेवर भी उनकी रोज़मर्रा की पोशाक का हिस्सा हुआ करता था। दुर्लभ रत्नों और हीरे जवाहरात से वे सर से पांव तक सजे होते थे, ऐसे ही एक महाराजा जो हीरे और  जेवरात के शौकीन थे ,वे थे पटियाला के भूपेन्द्र सिंह।

उन्होंने 1889 में दुनिया का सातवां सबसे बड़ा हीरा, डी बीयर्स हीरा खरीदा, इसे उन्होंने पेरिस यूनिवर्सल प्रदर्शनी से लिया था। यह हीरा 1888 में दक्षिण अफ्रीका में खनन किया गया था। और इस तरह से पटियाला हार की प्रसिद्ध कहानी शुरू होती है।

महाराजा 34 वर्ष के थे जब उन्होंने डी बीयर्स हीरे को एक विरासत में शामिल करने का फैसला किया और कार्टियर को डी बीयर्स हीरे के साथ एक औपचारिक हार बनाने के लिए कहा। हार आखिरकार 1928 में बना और इसे पटियाला नेकलेस के नाम से जाना जाने लगा। इसमें 2930 हीरों और कुछ बर्मी माणिकों से अलंकृत प्लेटिनम श्रृंखलाओं की पाँच पंक्तियाँ थीं। यह इतिहास में बनाया गया अब तक का सबसे महंगा आभूषण था और आज इसके मूल रूप में इसकी कीमत लगभग 30 मिलियन डॉलर होती।

महाराजा भूपिंदर सिंह की फोटो में इस हार को  देखा जा सकता है और उनके सुंदर पुत्र यादवेंद्र सिंह ने भी परिवार की विरासत को गर्व के साथ पहना था। इस हार को आखिरी बार 1946 में देखा गया था

1948 में पटियाला शाही खजाने से हीरे का हार गायब होने के बाद विवाद खड़ा हो गया था। 32 साल तक  इस हार का कोई आता पता नहीं था,  1982 में सोथबी की नीलामी में अचानक डी बीयर्स हीरा सामने आया, यह बिना हार के था। एक हार का एक हिस्सा तब लंदन में एक प्राचीन वस्तु की दुकान में देखा गया था। कार्टियर ने बाद में हार खरीदा और लापता पत्थरों को रेप्लिका से बदल दिया।

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