”Gangubai Kathiwadi” Review: कठियावाड़ी की गंगू के साथ न्याय कर पाई हैं आलिया, जानने के लिए यहां पढ़ें

फिल्म की कहानी कमाठीपुरा की गंगूबाई की जिंदगी पर आधारित है, जिसे कभी उसके लवर या पति ने मात्र 1000 रुपये में बेच दिया था और फिर वह सेक्स वर्कर बन गई। फिल्म में गंगूबाई का किरदार आलिया भट्ट ने निभाया है। वहीं, रहीम लाला जो गंगूबाई का मुंहबोला भाई होता है, उसके किरदार में अजय देवगन नजर आए हैं। हालांकि, डॉन करीम लाला का नाम फिल्म में रहीम लाला कर दिया गया है।

ये फिल्म शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। अगर आप गंगूबाई की जिंदगी को और करीब से जानने के लिए आलिया की इस फिल्म को देखने का प्लान कर रहे हैं, तो उससे पहले ये रिव्यू जरूर पढ़ ले, ताकि आप ये जान सकें कि आपको ये फिल्म देखनी चाहिए भी या नहीं।

ये कहानी है गुजरात के काठियावाड़ में पली बढ़ी गंगा हरजीवन दास काठियावाड़ी की। गंगा के पिता बैरिस्टर होते हैं। गंगा एक अच्छे परिवार से ताल्लुक रखती है। हालांकि, गंगा को 16 साल की उम्र में प्यार हो जाता है। वो भी अपने पिता के साथ काम करने वाले रमणिक के साथ। नौवीं क्लास तक पढ़ी गंगा एक दिन अपने अभिनेत्री बनने के सपने को पूरा करने के लिए रमणिक के साथ गुजरात से मुंबई भाग जाती है। वो रमणिक ही होता है जो उसे मुंबई में अभिनेत्री बनने के सपने दिखाता है और उसे अपने प्यार के जाल में फंसाकर मुंबई ले आता है। यहां वह मात्र 1000 रुपये में गंगा को कमाठीपुरा की उन गलियों में बेच देता है, जहां पर हर रोज कई महिलाओं के जिस्म का सौदा होता है।

पहले तो गंगा इस सच को मानने को तैयार नहीं होती कि उसे बेच दिया गया है, लेकिन हालात से समझौता करने के बाद वह गंगा से कमाठीपुरा की सेक्स वर्कर गंगू बन जाती है और फिर गंगू से गंगूबाई। हालांकि, गंगू के जीवन में बदलाव तब आता है, जब उसकी जिंदगी में एंट्री होती है डॉन करीम लाला की। करीम लाला को गंगूबाई दोनों एक दूसरे को अपना भाई बहन मान लेते हैं। करीम लाला के दम पर कमाठीपुरा पर गंगूबाई का राज होता है। गंगूबाई सेक्स वर्कर्स को समाज में इज्जत दिलवाने और अपने कानूनी अधिकारों के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ती है। इसके लिए वह देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से भी जा मिलती है।

गंगूबाई पर जो किताबों में लिखा है और जो इंटरनेट पर पड़ा है, वो कहानी अपने आप में बहुत कुछ कहती है। बड़े पर्दे पर गंगूबाई की उस दर्दभरी और रौंगटे खड़े कर देने वाली कहानी को दर्शाने में संजय लीला भंसाली नाकाम रहे हैं। असल किरदार पर बनने वाली कहानी को जितना प्रभावित होना चाहिए, वो संजय लीला भंसाली अपनी इस फिल्म में नहीं दिखा पाए। गंगूबाई की कहानी को सिर्फ कह दिया गया है, वो भी उतना ही जितना हुसैन जैदी ने अपनी किताब में लिख दिया है। अगर किसी ऐसे शख्स पर फिल्म बनाई जाती है, जो असल किरदार है, तो उसपर रिसर्च होना बहुत महत्वपूर्ण होता है।

ये फिल्म का सबसे बड़ा नेगेटिव पॉइंट है कि गंगूबाई के गंगा से गंगू बनने तक के सफर को प्रभावी तरीके से दर्शाने के लिए ज्यादा रिसर्च नहीं की गई। अगर मेकर्स चाहते तो गंगूबाई के बचपन और उसके परिवार संग उसके रिश्ते को भी दर्शा सकते थे, ये फिल्म को एक मजबूती देता कि कैसे गंगा ने अपने परिवार को छोड़ने का फैसला लिया। गंगा जिसके साथ भागती है, उसे कहानी में एकदम से एंटर करा दिया, न ये दिखाया कि गंगा और रमणिक कैसे एक दूसरे के करीब आए। गंगा और रमणिक की लव स्टोरी को थोड़ा और अच्छे से दर्शाया जा सकता था।

इसके बाद जब गंगा कमाठीपुरा पहुंची, तब उसके साथ क्या-क्या हुआ शुरुआत में ये भी फिल्म से गायब दिखा। फिल्म की छोटी.छोटी चीजें ऐसी रहीं, जिनपर काम किया जा सकता था। गंगूबाई और डॉन करीम लाला के रिश्ते को भी और खूबसूरती के साथ पेश किया जा सकता था, लेकिन मेकर्स इसमें भी नाकाम दिखे। सबसे बड़ी फिल्म में कमी तो यही दिखी कि हम असल में गंगूबाई के बारे में जान ही नहीं पाए कि आखिर गंगा कौन थी, उसका व्यवहार कैसा था, उसके आसपास के लोग उसके बारे में क्या सोचते थे, उसका बचपन कैसा था।

फिल्म क्यों देखें
फिल्म की जान अगर कोई है तो वो बिल्कुल आलिया भट्ट हैं। आलिया भट्ट को बड़े पर्दे पर देखकर साफ झलकता है कि उन्होंने गंगूबाई के किरदार के लिए काफी मेहनत की है। आलिया भट्ट ने शानदार एक्टिंग की है। इतना ही नहीं, आलिया भट्ट की आवाज में एक बदलाव भी दिखा। रौब दिखाने के लिए आलिया ने जिस तरह से दमदार आवाज में डायलॉग डिलीवरी की है, वो कमाल है। आलिया के अलावा सीमा पाहवा, विजय राज और शांतनु मिश्रा व अन्य सह.कलाकारों का अभिनय भी जबरदस्त रहा है। हालांकि, अजय देवगन इन सभी के आगे थोड़े फीके नजर आए हैं।

वहीं, निर्देशन की बात करें, तो संजय लीला भंसाली की इस फिल्म में मजा नहीं आया। संजय लीला भंसाली ने पहली बार किसी बायोपिक को बनाने की कोशिश की लेकिन वह इसमें हमें तो असफल दिखाई दिए। फिर वो चाहे रिसर्च में हों या फिर निर्देशन और कहानी में। ये फिल्म दर्शकों को बांधे रखेगी इसपर कुछ नहीं कहा जा सकता। हालांकि, संजय लीला भंसाली की एक तारीफ करनी होगी कि उन्होंने फिल्म के गानों का म्यूजिक अच्छा दिया है। ये दो गाने ढोलिड़ा और दूसरा जब सईयां फिल्म की जान हैं।

वैसे तो गंगूबाई पर किताब लिखी जा चुकी है, लेकिन अगर आप किताबों के शौकीन नहीं हैं, लेकिन गंगूबाई की कहानी से रूबरू होना चाहते हैं, तो आप आलिया भट्ट की फिल्म गंगूबाई काठियावाड़ी जरूर देख सकते हैं।

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