Harchhath Vrat Katha 2025: 14 अगस्त को हरछठ व्रत पर पढ़ें यह चमत्कारी कथा। व्रत कथा से होती है संतान की लंबी उम्र, सुख-शांति और हर संकट से मुक्ति।
Harchhath Vrat Katha 2025: हरछठ व्रत जिसे ललही छठ, कमर छठ, हल छठ या बलराम जयंती के नाम से भी जाना जाता है, इस वर्ष 14 अगस्त 2025 को मनाया जा रहा है। यह पर्व विशेष रूप से संतान की लंबी उम्र, कृषि समृद्धि और पारिवारिक सुख-शांति के लिए महिलाएं व्रत रखकर पूजा करती हैं। हरछठ का पर्व जन्माष्टमी से दो दिन पूर्व आता है और इसका धार्मिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक महत्व अत्यंत गहरा है।
Harchhath Vrat Katha: राजा, बहू और जल से भरे सागर की चमत्कारी कहानी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार एक राजा ने अपने राज्य में सागर खुदवाया ताकि लोगों को जल संकट से मुक्ति मिल सके। हालांकि सारे प्रयासों के बावजूद सागर में जल नहीं आया, जिससे राजा अत्यंत दुखी हो गया। जब उन्होंने ब्राह्मण से इसका उपाय पूछा तो बताया गया कि सागर में जल तभी आएगा जब वह अपने पुत्र या पुत्रवधू की बलि देंगे।
बलिदान के विचार से राजा व्यथित हो गया, लेकिन उन्होंने अपने पुत्रवधू को मायके भेजने की युक्ति अपनाई। बहू रोती-बिलखती मायके पहुंची, लेकिन मां ने हालात समझते हुए उसे लौटने की सलाह दी। बहू ने रास्ते में हरछठ माता से प्रार्थना की और जब वह वापस पहुंची, तो चमत्कार हो गया सागर जल से भर गया और उसका पुत्र जीवित अवस्था में वहीं खेल रहा था।
जब वह घर लौटी, तो उसने सबको सच्चाई बताई और हरछठ माता की कृपा से परिवार में फिर से खुशियां लौट आईं। राजा व समस्त परिवार ने हरछठ माता की भक्ति और बहू की सच्चाई को नमन किया।
हरछठ की दूसरी कथा: झूठ, लालच और पश्चाताप से उपजी ममता की कहानी
Harchhath Vrat Katha: दूसरी कथा में एक ग्वालिन का वर्णन है, जो प्रसव पीड़ा के दौरान भी दूध-दही बेचने निकल पड़ी। रास्ते में बच्चे को झाड़ियों में छोड़कर उसने मिश्रित दूध को झूठ बोलकर गांव वालों को भैंस का दूध बताकर बेच दिया। उसी दिन हल षष्ठी थी, जहां शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
बाद में किसान के हल से बालक घायल हो गया। किसान ने कांटों से उसका इलाज किया और चला गया। जब ग्वालिन लौटी तो अपने पापों का एहसास हुआ और उसने सब कुछ गांव वालों को बता दिया। पश्चाताप और महिलाओं के आशीर्वाद से उसका पुत्र फिर जीवित हो गया।
हरछठ व्रत का महत्व और पूजन विधि
हरछठ व्रत के दिन महिलाएं सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करती हैं और साफ स्थान पर छठ माता, शीतला माता व बलराम जी की पूजा करती हैं। पूजा में दही, चावल, महुआ, और हल से जुड़ी वस्तुओं का उपयोग होता है। महिलाएं संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए उपवास रखती हैं और व्रत कथा सुनना या पढ़ना अत्यंत आवश्यक माना जाता है।
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