Jitiya Puja Vidhi, Shubh Muhurat : जितिया व्रत पर अभिजीत और द्विपुष्कर योग का संयोग बन रहा है

Jitiya Puja Vidhi, Shubh Muhurat : भविष्य पुराण कहता है कि जीवित्पुत्रिका, यानी जितिया व्रत, संतान को लंबे समय तक जीवित रखता है।

Jitiya Puja Vidhi, Shubh Muhurat : हिंदू धर्म में जितिया व्रत बहुत महत्वपूर्ण है। महिलाएं हर साल आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया का निर्जला व्रत रखती हैं। साथ ही शाम को जीवित वाहन देवता की पूजा भी करती है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से संतान को सुख-समृद्धि मिलती है। साथ ही लंबी उम्र मिलती है। 24 सितंबर को जितिया व्रत है। इस दिन द्विपुष्कर योग और अभिजीत मुहूर्त भी होंगे। आइए पूजा की विधि, आरती और मंत्रों को जानें..।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जितिया व्रत के दिन अभिजीत मुहूर्त और द्विपुष्कर योग बन रहे हैं। जिसमें अभिजीत मुहूर्त 11 बजे 49 मिनट से शुरू होकर 12 बजे 48 मिनट तक चलेगा। पूरे दिन द्विपुष्कर योग रहेगा।

जीविप्पुत्रिका व्रत पूजन सामग्री शास्त्रों के अनुसार, भगवान जीमूत वाहन को पूजना चाहिए। गाय के गोबर से सियारिन और चील बनाकर उनकी पूजा भी की जाती है। साथ ही, जीविप्तुत्रिका व्रत की पूजा की थाली में अक्षत (चावल), पेड़ा, दूर्वा की माला, पान, लौंग, इलायची, सुपारी, श्रृंगार के सामान, सिंदूर पुष्प, गांठ का धागा, कुशा से निर्मित जीमूत वाहन की मूर्ति, धूप, दीप, मिठाई, फल, फूल, बांस के पत्ते और सरसों का तेल होना चाहिए।

जितिया व्रत के दिन सुबह जल्दी उठने की पूजा-विधि जानें। इसके साथ ही स्वच्छ कपड़े पहनें। वहीं गंगाजल हाथ में लेकर व्रत रखें। इसके बाद भोजन करें और पूजा करें। साथ ही पूरे दिन खाना छोड़ दें। मतलब पानी से दूर रहें। फिर महिलाएं दूसरे दिन सुबह स्नान के बाद पूजा करें और फिर पूरा दिन निर्जला व्रत रहें। महिलाएं वहीं व्रत के तीसरे दिन व्रत पारण करें। साथ ही सूर्य देव को अर्घ्य दें, फिर महिलाएं खाना लें। प्रदोषकाल में भी अष्टमी को जीमूतवाहन की पूजा की जाती है। इस व्रत में धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक छोटा सा तालाब बनाकर पूजा की जाती है।

जितिया व्रत का पूजा मंत्र है: कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।

सदा बसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि॥

जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत की आरती, ओम जय कश्यप नन्दन, ओम जय अदिति नन्दन।

ओम जय कश्यप, त्रिभुवन तिमिर निकंदन, भक्त हृदय चन्दन।

सप्त अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी

दु:खहारी, सुखकारी, मानस मलहारी ओम जय कश्यप, ।

अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली ओम जय कश्यप.।

सकल सुकर्म प्रसविता, सविता शुभकारी।।

विश्व विलोचन मोचन ,भव-बंधन भारी, विश्व विलोचन मोचन। जय कश्यप..।

Kamal समूह विकासक, नाशक  त्रय तापा

सहज सहज हरत अति, मनसिज संतापा ओम जय कश्यप॥

नेत्र व्याधि हर सुरवर भू पीड़ा हारी।

वृष्टि  विमोचन संतत विमोचन, परहित व्रतधारी ओम जय कश्यप।

सूर्यदेव करुणाकर , अब कृपा कीजिए।

हर अज्ञान मोह सब ,तत्वज्ञान दीजै। ओम जय कश्यप…।

 

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