PM Modi Graduation Degree का खुलासा नहीं होगा, दिल्ली हाई कोर्ट ने रद्द किया CIC का आदेश

PM Modi Graduation Degree News: दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि पीएम मोदी की ग्रेजुएशन डिग्री से जुड़ी जानकारी का खुलासा अनिवार्य नहीं है।

PM Modi Graduation Degree News: पीएम मोदी की ग्रेजुएशन डिग्री से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करने के केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के आदेश को दिल्ली हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पीएम मोदी के शैक्षणिक रिकॉर्ड और डिग्री का खुलासा करना अनिवार्य नहीं है। यह फैसला दिल्ली यूनिवर्सिटी की याचिका पर सुनवाई के बाद सुनाया गया, जिसमें उन्होंने CIC के आदेश को चुनौती दी थी।

CIC ने 2016 में दिया था डिग्री सार्वजनिक करने का आदेश- PM Modi Graduation Degree

साल 2016 में एक RTI याचिका के आधार पर CIC ने दिल्ली यूनिवर्सिटी को PM Modi Graduation Degree से संबंधित जानकारी का खुलासा करने का निर्देश दिया था। उस समय CIC ने यह तर्क दिया था कि किसी भी सार्वजनिक पद पर रहने वाले व्यक्ति खासकर प्रधानमंत्री की शैक्षिक योग्यताएं पारदर्शी होनी चाहिए। CIC ने यह भी कहा था कि यह जानकारी सार्वजनिक दस्तावेज के तौर पर उपलब्ध होनी चाहिए।

दिल्ली यूनिवर्सिटी ने दायर की थी याचिका

दिल्ली यूनिवर्सिटी ने इस आदेश को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि तीसरे पक्ष से संबंधित जानकारी साझा करना नियमों के खिलाफ है और इससे निजता का उल्लंघन होगा। यूनिवर्सिटी का कहना था कि शैक्षणिक रिकॉर्ड को सार्वजनिक करना सही नहीं होगा, क्योंकि इससे सरकारी अधिकारियों के कामकाज में बाधा आ सकती है।

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दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला- PM Modi Graduation Degree

दिल्ली हाई कोर्ट के जज सचिन दत्ता ने अपने आदेश में कहा कि शैक्षणिक रिकॉर्ड और डिग्री का खुलासा करना अनिवार्य नहीं है। कोर्ट ने यह भी माना कि इस तरह की जानकारी के खुलासे से गलत मिसाल बन सकती है और यह राजनीतिक उद्देश्यों के लिए उपयोग हो सकती है। इस प्रकार दिल्ली हाई कोर्ट ने CIC के आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि पीएम मोदी की ग्रेजुएशन डिग्री से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करने का कोई कानूनी दायित्व नहीं है।

सॉलिसिटर जनरल ने भी किया था तर्क

दिल्ली यूनिवर्सिटी की ओर से भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और उनकी कानूनी टीम ने यह तर्क दिया था कि इस तरह के डेटा को जारी करने से सरकारी कामकाज प्रभावित हो सकता है और यह राजनीतिक कारणों से गलत तरीके से इस्तेमाल हो सकता है। उनकी दलील सुनकर कोर्ट ने यूनिवर्सिटी के पक्ष में फैसला दिया।

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