जानें शिवलिंग की उत्पत्ति कब और कैसे हुई, शिवलिंग पूजा का महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथा जो देती है जीवन में सुख-शांति।
सनातन धर्म में शिवलिंग (Shivling) पूजा का विशेष महत्व है। इसे भगवान शिव का प्रतिनिधित्व माना जाता है और इसका नियमित पूजन करने से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और सभी संकटों से मुक्ति मिलती है। धार्मिक मान्यता है कि शिवलिंग का अभिषेक विशेष प्रकार के पंचामृत और पवित्र वस्तुओं से करने पर भक्त को महादेव की कृपा प्राप्त होती है। आइए जानते हैं शिवलिंग की उत्पत्ति (Shivling Katha) और इससे जुड़ी पौराणिक कथा।
शिवपुराण में वर्णित कथा
शिवपुराण के खंड 1 के नौवें अध्याय में शिवलिंग की उत्पत्ति का विस्तृत वर्णन किया गया है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच यह विवाद हो गया कि कौन अधिक शक्तिशाली है। इस बात की जानकारी सभी देवताओं और ऋषि-मुनियों तक पहुँच गई। उन्होंने निर्णय लेने के लिए भगवान शिव के पास जाने की सलाह दी।
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ज्योत से शिवलिंग की उत्पत्ति
भगवान शिव ने देवताओं को बताया कि मेरी उत्पन्न ज्योत के अंत तक जो सबसे पहले पहुँचेगा, वही श्रेष्ठ घोषित होगा। इस नियम के अनुसार, भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने तेजस्वी ज्योत की खोज शुरू की। शिव जी के तेजोमय शरीर से निकलती यह ज्योत पाताल और नभ की ओर बढ़ती रही।
भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी दोनों ही ज्योत के अंतिम छोर तक नहीं पहुँच पाए। जब ब्रह्मा जी झूठ बोलकर यह दावा करने लगे कि वे ज्योत तक पहुँच गए हैं, तो शिव जी ने उन्हें सचेत किया। इसके बाद भगवान विष्णु को श्रेष्ठ घोषित किया गया। इसी समय से यह ज्योत शिवलिंग के रूप में पूजा जाने लगी, जो शिव की असीम ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक है।
शिवलिंग पूजा का महत्व
शिवलिंग पूजा करने से न केवल संकटों से मुक्ति मिलती है, बल्कि घर और कार्यस्थल में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी होता है। इसे विशेष अवसरों पर पंचामृत, जल, दूध और बेलपत्र से अभिषेक किया जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि शिवलिंग केवल मूर्ति नहीं, बल्कि परम शक्ति और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक है।
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