शुक्र प्रदोष व्रत 2025 की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, उपाय, आरती और महत्व जानें। शिव-पार्वती की कृपा पाने के लिए करें व्रत और विशेष पूजा।
हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है और जब यह व्रत शुक्रवार को त्रयोदशी तिथि पर पड़ता है, तो इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है। कल, 19 सितंबर 2025 को यह व्रत रहेगा, और श्रद्धालुओं के लिए विशेष पूजा विधि, मुहूर्त तथा उपाय जारी किए गए हैं।
शुक्र प्रदोष व्रत तिथि एवं मुहूर्त
गतिविधि समय
त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ 18 सितम्बर 2025, 11:24 PM
त्रयोदशी तिथि समाप्ति 19 सितम्बर 2025, 11:36 PM
प्रदोष पूजा मुहूर्त 06:37 PM से 08:59 PM
अवधि लगभग 2 घंटे 22 मिनट
शुक्र प्रदोष व्रत का महत्व
शुक्रवार के दिन आने वाला शुक्र प्रदोष व्रत माता लक्ष्मी और शुक्र ग्रह को समर्पित है, मन जाता है कि इसे करने से वैवाहिक जीवन में स्थिरता, आर्थिक स्थिति में सुधार, और पारिवारिक सुख-सौभाग्य मिलता है।
भगवान शिव और माता पार्वती को प्रसन्न करने हेतु यह व्रत अत्यंत फलदायी माना गया है।
पूजा विधि
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और शिव-लिंग या शिव-पार्वती की मूर्ति के समक्ष व्रत संकल्प लें।
दिनभर फलाहार या सात्विक भोजन करें और किसी भी प्रकार का उल्लंघन न हो।
प्रदोष काल में शिवजी का अभिषेक करें जल, दूध, दही, शहद, घी एवं बेलपत्र अरूपित करें।
धतूरा, आक के फूल, चंदन और अक्षत से पूजा करें।
‘ॐ नमः शिवाय’ या ‘महा मृत्युंजय मंत्र’ का 108 बार जप करें। दीपक, अगरबत्ती एवं नैवेद्य चढ़ाएँ।
अंत में शिव पार्वती की आरती और भोग लगाएं। माता लक्ष्मी को कमल और सफेद मिठाई अर्पित करना शुभ माना जाता है।
शुक्र प्रदोष व्रत उपाय
गौपनीय स्थान पर शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, शहद, और बेलपत्र चढ़ाएँ।
लक्ष्मी माता की पूजा करें, विशेष रूप से कमल का फूल और मिठाई अर्पित करें।
108 जप, विशेष रूप से प्रदोष काल में, मन की शांति और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति हेतु बहुत प्रभावी।
गरीबों को सहायता दें जैसे दूध, मिठाई, सफेद वस्त्र आदि यह शिव ग्रहण को प्रसन्न करता है।
घर या मंदिर में दीपक जलाएँ, मच्छर के लार्वा पाए जाने पर छिड़काव करें।
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शुक्र प्रदोष व्रत आरती
शिवजी की आरती (ॐ जय शिव ओंकारा)
“ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहें पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥”
माता पार्वती की आरती
“जय पार्वती माता, जय पार्वती माता।
ब्रह्म सनातन देवी, शुभ फल की दाता॥
जय पार्वती माता॥
अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता।
जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता॥
जय पार्वती माता॥
सिंह को वाहन साजे कुंडल है साथा।
देव वधु जहं गावत नृत्य कर ताथा॥
जय पार्वती माता॥
सतयुग शील सुसुन्दर नाम सती कहलाता।
हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता॥
जय पार्वती माता॥
शुम्भ-निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता।
सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाथा॥
जय पार्वती माता॥
सृष्टि रूप तुही जननी शिव संग रंगराता।
नंदी भृंगी बीन लाही सारा मदमाता॥
जय पार्वती माता॥
देवन अरज करत हम चित को लाता।
गावत दे दे ताली मन में रंगराता॥
जय पार्वती माता॥
श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता।
सदा सुखी रहता सुख संपत्ति पाता॥
जय पार्वती माता॥”
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