Chaturmas Niyam: चातुर्मास के दौरान क्या करना चाहिए?

Chaturmas Niyam: देवशयनी एकादशी से चार महीने का चातुर्मास शुरू होता है। भगवान शंकर इन चार महीनों में सृष्टि चलाते हैं। इस समय कुछ नियमों का पालन करना बहुत शुभ है। चातुर्मास के नियमों को जानें।
Chaturmas Niyam 2025: अब सृष्टि के मालिक श्रीहरि के योगनिद्रा में विश्राम करने का समय है। सनातनी मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु हरिशयनी एकादशी की तिथि से कार्तिक मास की देवोत्थान एकादशी तक चार महीने योग निद्रा में रहेंगे। इस दिन चातुर्मास भी शुरू होगा। इस कालखण्ड में सृष्टि का संहार करने का दायित्व निर्वाह करे वाले महादेव ही भगवान विष्णु के दायित्वों को संभालेंगे।
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हरिशयनी एकादशी को पद्मा या देवशयनी एकादशी भी कहते हैं। ज्योतिषाचार्य पं. वेदमूर्ति शास्त्री ने बताया कि इस वर्ष 6 जुलाई को हरिशयनी एकादशी होगी। 5 जुलाई की शाम 7 बजे आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी शुरू होगी और 6 जुलाई की रात 9:16 बजे समाप्त होगी। उदयातिथि में एकादशी 6 को मिलने से व्रत उसी दिन होगा। विशिष्ट बात यह है कि इस तिथि पर विशाखा नक्षत्र 25 घंटे से अधिक रहेगा। 5 जुलाई की शाम 07:52 बजे विशाखा नक्षत्र शुरू होगा और 6 जुलाई की रात्रि 10:42 बजे तक रहेगा।
इस दिन साध्ययोग भी होगा। 5 जुलाई को रात 08:36 बजे शुरू होगा। 6 जुलाई को रात 09:27 बजे समापन होगा। आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि से भगवान श्रीहरि विष्णु चार महीने तक क्षीरसागर में योगनिद्रा में विश्राम करते हैं। (Chaturmas Niyam 2025) हरिशयनी एकादशी से सभी मांगलिक क्रियाएँ बंद हो जाती हैं। विशेष तिथि पर व्रत उपवास रखकर भगवान् श्रीविष्णु की कृपा पाने के लिए उनकी पूजा-अर्चना बहुत महत्वपूर्ण है।
चातुर्मास की शुरुआत होगी: चातुर्मास में सभी मांगलिक कार्यों को छोड़ दिया जाता है। वहीं धार्मिक पूजा कर सकते हैं। चातुर्मास्य की अवधि आम तौर पर चार महीने की होती है। चातुर्मास के व्रत और यम-नियम हरिशयनी एकादशी से शुरू होंगे। कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तक यह क्रम जारी रहेगा। हरि प्रबोधिनी एकादशी है। इस वर्ष यह एकादशी 2 नवंबर को पड़ेगी।
जो चातुर्मास में वर्जित है: चातुर्मास में तेल, शहद, मूली, परवल, बैंगन, शाक-पात और गुड़ नहीं खाना चाहिए। परिजनों के अलावा किसी अन्य व्यक्ति से दही और भात नहीं खाना चाहिए। चातुर्मास व्रत रखने वालों को दूसरे स्थानों पर नहीं जाना चाहिए। एक ही स्थान पर भगवान की पूजा करनी चाहिए। इस अवधि में ब्रह्मचर्य का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए।