UPSC
UPSC: दिल्ली के शास्त्री नगर, मुखर्जी नगर और राजीव नगर में UPSC की तैयारी करने वाले लोगों की भरमार है। कम सुविधाओं में रहकर अपने सपनों को पूरा करने के लिए लोग देश की सबसे कठिन परीक्षा की तैयारी करते हैं। विपरीत परिस्थितियों में UPSC के लिए पढ़ाई करना, सपनों को पूरा करने के लिए कई विद्यार्थियों का उत्साह, और गरीबी में पढ़ाई करना एवरेस्ट की चोटी चढ़ने से कम नहीं है। तैयारी के दौरान छात्र अक्सर अपने समय और पैसे के अलावा मानसिक और शारीरिक बीमारियों का शिकार होते हैं।
राष्ट्रीय जर्नल फॉर रिसर्च इन अप्लाइड साइंस एंड इंजीनियरिंग टेक्नोलॉजी में छपे सर्वे पर आधारित एक अध्ययन पत्र ने बताया कि देश में UPSC की तैयारी करने वाले कई अभ्यर्थियों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं हैं। UPSC: कुछ छात्रों को इसमें सफलता नहीं मिलती, और यह उनके लिए एक ट्रॉमा की तरह काम करता है, खासकर उनके लिए जिनके पास कोई अन्य स्रोत नहीं है।
क्या मानसिक स्वास्थ्य है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का मानना है कि अगर कोई व्यक्ति जिंदगी के सभी संघर्षों को सहन करने के बाद भी मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है, तो वह मानसिक रूप से स्वस्थ है। सामाजिक और भावनात्मक मानसिक स्वास्थ्य को मानसिक स्वास्थ्य कहते हैं। यह भी मनुष्य की सोचने, समझने, महसूस करने और कार्रवाई करने की क्षमता पर प्रभाव डालता है। दुनिया भर में अवसाद, मानसिक विकार में सबसे बड़ी समस्या है। यह कई सामाजिक समस्याओं जैसे नशाखोरी, गरीबी और बेरोज़गारी का कारण बनता है।
2022 से 2023 तक, एक अध्ययन में लगभग 203 UPSC अभ्यर्थियों का सर्वे किया गया। इस अध्ययन में परीक्षा, कोचिंग, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति, भावनात्मक समस्याओं और नींद के घंटे शामिल थे।
19 से 33 साल की आयु के लोगों ने एक सर्वे में खुलकर जवाब दिया है, जिसमें कई अभ्यर्थियों ने डिप्रेशन की शिकायत की है। 53.3% लोगों ने मान लिया कि कुछ हद तक उनका मानसिक स्वास्थ्य खराब है।UPSC: मुख्य समस्या इसमें उनकी खराब आर्थिक स्थिति है। उस सर्वे में शामिल विद्यार्थियों में से 16 प्रतिशत ने अपनी मेंटल हेल्थ को बहुत अच्छा बताया, 29 प्रतिशत ने अच्छा बताया, 28 प्रतिशत ने खराब बताया और 25 प्रतिशत ने बहुत खराब बताया। साथ ही, दो प्रतिशत विद्यार्थी अपनी मानसिक स्वास्थ्य के बारे में कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थे।
बार-बार प्रयासों के बाद भी सकारात्मक परिणाम नहीं मिलना अभ्यर्थियों को निराश करता है। इस अध्ययन में चार बार या उससे अधिक प्रयास करने वाले विद्यार्थियों की मानसिक स्थिति बहुत खराब रही है, जबकि उन विद्यार्थियों ने एक या दो बार प्रयास किया है। आंकड़े देखें तो इनमें से ९० प्रतिशत विद्यार्थी छह बार कोशिश कर चुके हैं। उनका कहना था कि उनका मानसिक स्वास्थ्य हर बार हार से प्रभावित होता है।
यह भी पता चला कि UPSC उम्मीद्वारों की मानसिक स्थिति में भावात्मक या भावात्मक कारण भी महत्वपूर्ण हैं। जो चलते-चलते उदास या चिंतित हो जाता है। 41.7 प्रतिशत अभ्यर्थियों ने कहा कि वे अपने काम या दैनिक जीवन में आने वाली समस्याओं से परेशान हैं। किसी को अपनी भावनाओं को दिखाना या नियंत्रित करना भी मानसिक स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके बावजूद, इस अध्ययन में भाग लेने वाले 32 प्रतिशत अभ्यर्थियों का मानना है कि भावनात्मक मुद्दे उनकी तैयारी में कोई बाधा नहीं डालते। साथ ही, 26.2% अभ्यर्थियों को पता नहीं है कि उनकी तैयारी में ये कारण भी शामिल हैं।
स्वास्थ्य क्या है?
36% अभ्यर्थियों ने अपना शारीरिक स्वास्थ्य कुछ हद तक खराब या खराब बताया।इस सवाल में भाग लेने वालों में से 22 प्रतिशत ने अपने स्वास्थ्य को बहुत अच्छा बताया, 41 प्रतिशत ने अच्छा बताया, 21 प्रतिशत ने खराब बताया और 15 प्रतिशत ने बहुत खराब बताया।वहीं एक प्रतिशत अभ्यर्थियों को इस बारे में कुछ भी पता नहीं है।
कम सोने के घंटे भी?
UPSC अभ्यर्थियों से पूछा गया कि वे प्रतिदिन छह से आठ घंटे की नींद लेते हैं। इस अध्ययन में भाग लेने वालों में से 46.6% ने बताया कि वे दिन में सिर्फ 4 से 6 घंटे सोते हैं। जबकि 49% लोगों ने बताया कि वे दिन में 6 से 8 घंटे की नींद लेते हैं। इसके अलावा, तीन प्रतिशत अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि वे रात में आठ घंटे से अधिक सोते हैं।नींद की गुणवत्ता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जो किसी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर सीधा असर डालता है।
कितने प्रतिशत अभ्यर्थी कोचिंग में शामिल होते हैं?
साथ ही, इस अध्ययन ने पाया कि UPSC के उम्मीदवार अक्सर कोचिंग ज्वाइन करते हैं। 68% उम्मीदवार UPSC की तैयारी के लिए कोचिंग लेते हैं।32 प्रतिशत उम्मीदवार भी कोचिंग नहीं जाते हैं। रिसर्च में भाग लेने वाले शिक्षकों का मानसिक स्वास्थ्य थोड़ा बेहतर है।
कभी मानसिक स्वास्थ्य का निदान नहीं किया गया?
इस अध्ययन में भाग लेने वालों में से 87.40 प्रतिशत ने मानना था कि उनके मानसिक स्वास्थ्य का कोई इलाज कभी नहीं किया गया था। साथ ही, 12.60 प्रतिशत उम्मीदवार ने बताया कि उन्हें मानसिक बीमारी का इलाज दिया गया है। इससे पता चलता है कि अधिकतर लोग मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं के प्रति जागरुक नहीं हैं।UPSC उम्मीदवारों पर शारीरिक स्वास्थ्य और नींद की आदतों से भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
UPSC की तैयारी करने के लिए 10 महीने की कोचिंग फीस 1.20 लाख रुपए से 1.80 लाख रुपए होती है, जो आर्थिक कठिनाइयों और समाज के बढ़ते दबाव से जुड़ा हुआ है। बाद में अधिकांश छात्रों को वैकल्पिक विषय के लिए दूसरे शिक्षकों से भी मिलना पड़ता है। जिसकी लागत दस से पच्चीस हजार रुपए तक होती है।
इन सभी खर्चों को जोड़कर, एक छात्र को एक वर्ष में लगभग 3 लाख रुपये खर्च करने पड़ेंगे। यहां कुछ विद्यार्थी सामान्य परिवारों से आते हैं, लेकिन कई को इसके लिए कर्ज लेना पड़ता है।
इसके अलावा, UPSC कोचिंग में कमरों की कीमत बहुत अधिक है। साथ ही मुखर्जी नगर और राजीव नगर जैसे इलाकों में डिब्बेनुमा कमरों का किराया 8 से 10 हजार रुपए प्रति महीना होता है, जिसमें एक व्यक्ति के अलावा किसी दूसरे का रहना भी मुश्किल है। ऐसे में उनका मानसिक स्वास्थ्य चुनाव नहीं होने का डर से प्रभावित होता है।
स्वस्थ रहना एक महत्वपूर्ण चुनौती है
UPSC की तैयारी करते समय हर विद्यार्थी को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहना भी एक बड़ी चुनौती है। ओल्ड राजिंदर नगर में रहकर तैयारी कर रहे अहमदाबाद के समीर प्रजापति ने बीबीसी से हुई बातचीत में कहा, “शुरुआत में ये उतना मायने नहीं रखता है लेकिन समय के साथ सामाजिक दबाव, पैसे की समस्या बढ़ती जाती है क्योंकि आपको कुछ असफलताएं मिलती हैं। कई लोगों को तनाव महसूस होता है क्योंकि आपकी उम्र के लोगों या दोस्तों को अच्छी जगह नौकरी मिली होगी और आप अभी तैयारी कर रहे हैं।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के एक सर्वे के अनुसार, देश में 12 से 13 प्रतिशत छात्र व्यवहार, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक समस्याओं से पीड़ित हैं। यूपीएससी की तैयारी करने वाले छात्रों को अपने परिवार और दोस्तों से लंबे समय तक दूर रहना पड़ता है, लेकिन एक स्थिर और स्वस्थ मानसिकता सबसे महत्वपूर्ण है। यहाँ बहुत से लोग अकेलेपन महसूस करते हैं।
प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले किसी भी विद्यार्थी को सफलता और करियर बनाने की चिंता हमेशा रहती है। यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षाएं, जिनमें बहुत समय लगता है, कुछ विद्यार्थियों को हताशा, अवसाद और नशे की लत में डाल देती हैं।
इसके लिए सिलेबस के अलावा भी तैयार रहना होगा
UPSC परीक्षा देने वाले छात्रों के लिए, सिलेबस निश्चित नहीं है और कोई गारंटी नहीं देता।ऐसे में उन्हें एक बैकअप योजना भी बनानी होगी। यूपीएससी की तैयारी कर रहे छात्रों का पहला वर्ष कोचिंग में बीत जाता है। बाद में वो प्रीलिम्स देते हैं और अगर सफल होते हैं तो अंतिम रिजल्ट एक साल बाद आता है। उन्हें सामान्य परिस्थितियों में “मैं कहां हूँ और मुझे कितनी मेहनत करनी है” जानने में दो साल लगते हैं।
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घर पर रहकर पढ़ाई नहीं हो सकती?
समाचार एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में, 2022 में यूपीएससी में देश में दूसरा स्थान हासिल करने वाली गरिमा लोहिया ने कहा कि मैंने अपने घर पर रहकर अपनी खुद की पढ़ाई की। उस समय मुझे कोई परेशानी नहीं होती थी, इसलिए मैं रात 9 बजे से सुबह 9 बजे तक पढ़ाई करती थी।
इसी साल 865वीं रैंक हासिल करने वाले आदित्य अमरानी ने बीबीसी से हुई बातचीत में कहा कि आपकी तैयारी आप पर निर्भर करती है। मैं बस घर पर रहकर तैयारी की है। सिर्फ वैकल्पिक विषय के लिए कुछ ऑनलाइन मार्गदर्शन लिया था। हां, घर रहते समय बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है, जैसे त्यौहार और परिवार से मिलना। यूपीएससी की परीक्षा कुल मिलाकर कठिन होती है, लेकिन हर साल टॉपरों से मिलने से पता चलता है कि कड़ी मेहनत से कुछ भी हासिल किया जा सकता है. सही रणनीति और बैकअप योजना भी जरूरी है।
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