क्यूँ ? चुनावी चर्चा में शामिल नहीं हो पाते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसे अहम मुद्दे!

प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की चौथी आकलन रिपोर्ट (2007) ने धरती के भविष्य की खतरनाक तस्वीर का अनुमान लगाया है। मगर फिर भी भारत में यह अब भी चुनावी मुद्दा नहीं है ।जनसंख्या के मायनो से भारत का सबसे बड़ा राज्य कहे जाने वाले , उत्तर प्रदेश में इसी महीने से विधानसभा चुनाव होने हैं।

ज्‍यादातर राजनीतिक पार्टियों ने अपना अपना चुनावी घोषणापत्र जारी कर दिया है। लेकिन इस बार भी जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण का मुद्दा राजनीतिक चर्चाओं से गायब है। उत्तर प्रदेश के वोटर जलवायु परिवर्तन के बारे में कुछ सोच रहा है या नहीं, इस मुद्दे पर जलवायु परिवर्तन पर केन्द्रित संचार थिंक टैंक क्लाइमेट ट्रेंड्स ने शुक्रवार को एक वेबिनार आयोजित किया । जिसमें विशेषज्ञों की राय जानी गयी और प्रदूषण के मुद्दे को कैसे जन चर्चा का विषय बनाया जाए, इस पर व्यापक विचार किया गया।

वर्ल्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट में वायु गुणवत्ता शाखा के प्रमुख डॉक्टर अजय नागपुरे ने बताया कि “कोई भी मसला तभी राजनीतिक मुद्दा बनता है, जब वह आम लोगों का मुद्दा हो। समस्या यही है कि प्रदूषण अभी तक आम लोगों का मुद्दा नहीं बन पाया है”। उन्होंने दिल्ली में हुए एक सर्वे का जिक्र करते हुए बताया कि हमने इस सर्वेक्षण के दौरान लोगों से पूछा गया कि ऐसी कौन सी 5 चीजें हैं जिनसे वो नाखुश है ? यह बात स्पष्ट रूप से सामने आयी कि प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन उन पांच चीजों में शामिल नहीं था।

आईआईटी कानपुर और नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की स्टीयरिग कमेटी के सदस्य में प्रोफेसर एसएन त्रिपाठी ने कहा कि हमें यह समझना होगा कि क्लीन एयर का मुद्दा भारत में मुश्किल से सात-आठ साल से ही उठना शुरू हुआ है। भारत का नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम अभी भी सिर्फ़ ढाई साल का बच्चा है।

इसका मतलब की भारत के स्तर पर अभी यह कार्यक्रम ढाई साल पहले ही शुरू हुआ है।उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार और स्थानीय स्तर पर अब यह बात समझी जाने लगी है कि हमें इस मुद्दे पर कुछ काम करना होगा। प्रदूषण को चुनावी मुद्दा बनाने के लिए मीडिया को भी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।

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