भोपाल में ‘वंदे मातरम’ के 150वें स्मरणोत्सव की शुरुआत हुई। कार्यक्रम में राष्ट्रीय गीत के इतिहास और सांस्कृतिक महत्व पर चर्चा की गई और वर्षभर विभिन्न आयोजन करने की घोषणा की गई।
मध्यप्रदेश में 7 नवंबर को राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम के 150वें वर्ष का स्मरणोत्सव शुरू हुआ। इस अवसर पर राजधानी भोपाल के शौर्य स्मारक में आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भारत माता के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर और दीप प्रज्ज्वलित कर की। कार्यक्रम के तहत एक पत्रिका का भी विमोचन किया गया, जिसमें वंदे मातरम के इतिहास और सांस्कृतिक संदर्भों का उल्लेख है। स्मरणोत्सव अगले एक वर्ष तक चार चरणों में विभिन्न आयोजनों के साथ चलाया जाएगा।
सीएम डॉ. मोहन यादव ने कहा, “बंकिमचंद्र जी का यह गीत आजादी का मूल मंत्र बना था। लेकिन, आजादी के साथ जब हमें राष्ट्रगीत को अपनाने का समय आया, तो देश को दिग्भ्रमित करने की कोशिश की गई। वंदे मातरम के इतिहास को जानने की आवश्यकता है।” उन्होंने आगे कहा, “वंदे मातरम महज एक गीत नहीं, वो हमारे लिए मंत्र है। वंदे मातरम ने शरीर में प्राण की तरह काम किया।”
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उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलनों में गीतों और नारों ने भावनात्मक एकजुटता को बढ़ाया। डॉ. यादव ने कहा, “इस तरह के शब्दों की रचना से नए प्रकार का स्पंदन होता है, मन में नए प्रकार के संकल्प आते हैं।”
स्मरणोत्सव के दौरान राष्ट्रीय पर्वों और विशेष अवसरों पर वंदे मातरम से जुड़े कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। मुख्यमंत्री ने इस मौके पर स्वदेशी उत्पादों के उपयोग और स्थानीय कारीगरों एवं उद्योगों के समर्थन का संकल्प भी दिलाया। कार्यक्रम में संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव अशोक वर्णबाल ने कहा कि वंदे मातरम 1875 में बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा रचा गया था और आजादी के आंदोलन में यह गीत “क्रांति गीत” के रूप में उभरा था।
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