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Sheetala Ashtami 2025: 22 या 23 शीतला अष्टमी कब है? जानें तिथि और शुभ मुहूर्त

Sheetala Ashtami 2025 Kab Hai: हिंदू धर्म में शीतला अष्टमी का व्रत अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

Sheetala Ashtami 2025 Date: ये व्रत माता शीतला के नाम पर है। ये व्रत चैत्र महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हर साल किया जाता है। शीतला अष्टमी के दिन व्रत के साथ-साथ माता शीतला की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन व्रत और पूजन से जीवन में खुशियों का आगमन होता है।

हिंदू धर्म में शीतला अष्टमी का व्रत बहुत पावन और खास है। बसौड़ा भी इसका नाम है। हिंदू पंचांग के अनुसार, शीतला अष्टमी का व्रत हर साल चैत्र महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन शीतला माता की विशेष पूजा भी की जाती है। इस दिन माता को पूजा करके बासी भोग लगाने की परंपरा है। शीतला अष्टमी का व्रत सफ्तमी तिथि से ही शुरू होता है।

धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार..।

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भी शीतला अष्टमी का व्रत और माता की विधि-विधान से पूजा करता है, वह अपने जीवन से सभी पीड़ाओं को दूर करता है। इस व्रत को करने से बीमारी दूर होती है। संतान खुश रहती है। साथ ही धन, वैभव और सुख जीवन भर रहते हैं। इस साल शीतला अष्टमी के व्रत को लेकर संदेह है। यही कारण है कि इस वर्ष शीतला अष्टमी का व्रत 22 या 23 मार्च को होगा। साथ ही इसका शुभ मुहुर्त क्या है?

शीतला अष्टमी का व्रत कब है?

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष चैत्र महीने की अष्टमी तिथि 22 मार्च को सुबह 4 बजकर 23 मिनट पर शुरू होगी। कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 23 मार्च को सुबह 5 बजकर 23 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में, उदया तिथि के अनुसार 22 मार्च को शीतला अष्टमी का व्रत रखा जाएगा। 22 मार्च को शीतला अष्टमी की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजे 16 मिनट पर होगा। ये शुभ मुहूर्त शाम को 6 बजे 26 मिनट तक रहेगा।

शीतला अष्टमी की पूजा की प्रक्रिया

शीतला अष्टमी की सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना चाहिए। इसके बाद साफ कपड़े पहनकर शीतला माता का ध्यान रखें। फिर व्रत रखने का निश्चय करें। इसके बाद माता शीतला की पूजा करें। पूजा करते समय माता को जलाएं। पूजा करते समय रोली, हल्दी, अक्षत और अन्य सामग्री अर्पित करें। बड़कुले की माला और मेहंदी दें। माता को रात के समय बने प्रसाद जैसे- मीठे चावल, हलवा, पूरी आदि का अर्पित करें. व्रत कथा और शीतला स्त्रोत का पाठ करें. अंत में आरती करके पूजा समाप्त करें. पूजा के बाद माता का भोग ग्रहण करके व्रत का पारण करें।

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