महादेव की महारात्रि: भगवान शिव-पार्वती के इन पाचं सुत्रों को अपना कर अपने दापंत्य जीवन को बनाएं सुखदाई
आज महाशिवरात्रि का दिन है। आज के दिन भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। शिव पुराण में ये भी कथा है कि इसी दिन भगवान शिव ने पहली बार ज्योतिर्लिंग के रूप में दर्शन दिए थे। शिव-पार्वती की गृहस्थी को आदर्श माना जाता है। बेटे कार्तिकेय और गणेश के साथ उनका परिवार और प्रेम आधुनिक परिवारों को क्या सिखाता है। कैसे हम पति-पत्नी, माता-पिता और संतानों के संबंधों को प्रेमपूर्ण रख सकते हैं, ये सारी बातें शिव परिवार में है। आइए, उन पांच सूत्र को जानें जो हमारे दापंत्य जीवन के लिए आवश्यक है, जो हमे शिव परिवार से जानने के लिए मिलती है।
जीवनसाथी को दें पूरा सम्मान
रामचरित मानस में शिव पार्वती की एक कहानी है। माता पार्वती शिव से भगावन राम के अवतार की कथा सुनने आईं। जानि प्रिय आदरू अति कीन्हा, बाम भाग आसुन हर दीन्हा। इसका मतलब है कि पार्वती को अपना परमप्रिय मानते हुए भगवान शिव ने उनका बहुत सम्मान किया। अपने बराबरी में बायीं ओर बैठने के लिए उन्हें आसन दिया। शिव पार्वती का यह रिश्ता समझाता है कि पति पत्नी के मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम के साथ आदर भाव भी होना चाहिए। अगर एक दूसरे के लिए सम्मान और बराबरी का भाव नहीं है तो ऐसे पति पत्नी का गृहस्थी कभी सुखी नहीं रह सकती।
बच्चों में कभी स्पर्धा ना कराएं
यह कहानी शायद सब जानते हो। गणेश और कार्तिकेय की शादी का ख्याल मन में आया तो, शिव पार्वर्ती ने दोनों में एक शर्त रखी कि जो सृष्टि का चक्कर लगाकर पहले आएगा, उसका विवाह पहले होगा। कार्तिकेय मोर पर बैठकर सृष्टि का चक्कर लगाने निकले और गणेश ने शिव पार्वती की ही परिक्रमा करके शर्त जीत ली। उनका तर्क था कि संतान के लिए उनके माता पिता ही सृष्टि होते हैं।
ये कथा भगवान गणेश की बु़िद्ध को दर्शाती है, लेकिन इसके बाद कार्तिकेय ने प्रतिज्ञा कर ली कि वे कभी भी शादी नहीं करेंगे। ये कहानी समझाती है कि बच्चों में कभी भी कोई काॅम्पटीशन नहीं रखें। हर संतान की अपनी विशेषता होती है, स्पर्धा से मतभेद के साथ मनभेध होता है।
स्वाभव भले अलग हो पर परिवार एक रहे
भगवानर शिव के परिवार में स्वाभाव, वाहन और पहचान अलग अलग हैं। शिव का वाहन नंदी, गले में सर्प, पार्वती का वाहन शेर, गणेश का वाहन चूहा और कार्तिकेय का मोर। ये चारों के वाहन आपस में शत्रु माने जाते हैं, लेकिन जब शिव के परिवार में होते हैं तो सब मील जुलकर रहते हैं। ये सिखाता है कि भले ही परिवारिक सदस्यों में कितना भी मतभेद क्यों ना हो, उन्हें हमेशा प्रेम की डोरी से बंधे रहना चाहिए।
अपने अधिकारों और शक्तियों से बच्चों को दूर रखें
तारकासुर को मारने के लिए कार्तिकेय का जन्म हुआ। तारकासुर ने देवताओं पर काफी अत्याचार किए थे। उसे वरदान था कि भगवान शिव का संतान ही उसका नाश कर सकता है। कार्तिकेय ने भगवान शिव की मदद से उसका नाश किया। तब कुछ देवताओं ने यह प्रस्ताव रखा कि इंद्र की जगह कार्तिकेय को ही देवताओं का राजा बना दिया जाए । भगवान शिव ऐसा करने में सक्षम भी थे, लेकिन उनका कहना था कि ऐसा करना सही नहीं रहेगा।
किसी एक को पद से हटाकर मैं अपनी शक्ति से बेटे को राजा नहीं बना सकता। वो अपनी योग्यता से ही आगे बढ़ेगा। उन्होंने देवताओं के राज के बजाय कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति बना दिया।
अधोर शिव कहते हैं भेदभाव नहीं करो
शिव को सष्टि का सबसे पहला अघोरी माना गया है। श्मशानवासी भी शिव हैं। अघोर का मतलब है जो घोर नहीं हो, घोर यानी भयंकर, भेद बुद्धि से भरा हुआ। शिव कभी किसी में भेदभाव नहीं करते। जैसे वो देवताओं की रक्षा करते हैं, देत्यों को भी वैसे ही उन्होंने वरदान दिए हैं। यही कारण है कि उन्हें सारे देवताओं में श्रेष्ठ माना जाता है। शिव सिखाते हैं कि हमे हमेशा अपनी नजर समान रखनी चाहिए। किसी भी प्राणी में भेद नहीं करना चाहिए।