जया एकादशी व्रत करने से मिलता है पिशाच योनी से छुटकारा,जानें कैसे
हर महीने की एकादशी तिथि को हिंदू धर्म में बेहद ही महत्व दिया गया इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन जया एकादशी का व्रत रखा जाता है इस दिन भगवान विष्णु को पुष्प जल अक्षत रोली और विशिष्ट सुगंधित पदार्थों को अर्पित करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है आपको बता दें इस बार यह व्रत 12 फरवरी 2022 को रखा जाएगा।
जया एकादशी का यह यह व्रत बेहद फलदाई माना गया है ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक इस व्रत को करता है उन्हें मृत्यु के बाद भूत प्रेत प्रसाद जैसी योनियों में जाने का भय नहीं रहता जो जातक इस व्रत को करते हैं वह जीवन और मरण के बंधन से मुक्ति पाकर मोक्ष की प्राप्ति कर लेते हैं ।
आइए हम आपको बताते हैं जया एकादशी व्रत की कथा और पूजा मुहूर्त–
इस बार जय एकादशी का व्रत 12 फरवरी 2022 यानी शनिवार को रखा जाएगा व्रत का पारण अगले दिन यानी 13 फरवरी 2022 को होगा पारण करने का समय सुबह 7:00 बज कर 1 मिनट से 9:15 तक यानी करीब 2 घंटे 13 मिनट की अवधि तक रहेगा इस समय पर जातक एकादशी के व्रत का पारण कर सकते हैं।
जया एकादशी व्रत की पौराणिक कथा एक बार राजा इंद्र की सभा में उत्सव चल रहा था देवगढ़ संत पुरुष सभी उत्सव में उपस्थित थे उस समय गंधर्व गीत गा रहे थे और गंधर्व कन्या याद कर रही थी इन गंधर्व में एक मालीवाल नाम का गंधर्व ही था जो बहुत ही ज्यादा सुरीला गाता था उसकी आवाज जितनी सुरीली थी उतना ही सुंदर उसका रूप भी था उधर गंधर्व कन्याओं में एक सुंदर प्रस्तुति नामक नृत्यांगना भी थी पशुपति और मालवा एक दूसरे को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए और अपने लवर ताल से भटक जाते उनके इस कृत्य से देवराज इंद्र नाराज हो गए और उन्होंने उन्हें श्राप दे दिया कि वे दोनों स्वर्ग से वंचित होकर मृत्युलोक में पिशाचों सा जीवन भोगोगे। शराब के कारण दोनों ही प्रेत योनि में चले गए और दुख भोगने लगे पिसाची जीवन इतना कष्टदायी था कि दोनों ही दुख में रहते थे।
एक दिन माघ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन था पूरे दिन में दोनों ने सिर्फ एक बार ही फलाहार किया था रात्रि में भगवान से प्रार्थना कर कि उन्होंने पश्चाताप भी किया इसके बाद दूसरी सुबह उन दोनों की ही मृत्यु हो गई हालांकि यह व्रत उन दोनों ने अनजाने में किया था लेकिन संयोग से उस दिन एकादशी पड़ गई जिस वजह से उन्हें जय एकादशी का उपवास संपूर्ण करने का मौका मिला और उसकी ही प्रभाव से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति भी मिल गई और भी पुणे स्वर्ग लोक चले गए।
जया एकादशी की व्रत पूजा विधि इस दिन इस व्रत के लिए 1 दिन पहले से ही नियम शुरू हो जाते यानी कि व्रत से पूर्व दशमी के दिन एक ही समय सात्विक भोजन ग्रहण करने की परंपरा है व्रत करने वाले लोगों को ब्रह्माचार्य का पालन करना चाहिए जो भी जातक इस व्रत को रखते हैं उन्हें सुबह सुबह स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेकर धूप दीप फल पंचामृत आदि से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए साथ ही रात में जागरण करके श्री हरि के नाम का भजन भी करना चाहिए द्वादशी वाले दिन किसी जरूरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन करा कर दान दक्षिणा देकर व्रत का पारण करें।