नर्मदा जिले के सागबारा तालुका के ओलगाम में जंगल भूमि पर खेती करने वाले किसानों और उकाई डैम में प्लॉटिंग सोलर प्रोजेक्ट से प्रभावित लोगों से AAP विधायक चैतर वसावा ने मुलाकात की।
- आने वाली पीढ़ी के लिए एकजुट होकर संवैधानिक अधिकार और जंगल बचाना जरूरी: चैतर वसावा का आह्वान
चैतर वसावा: नर्मदा जिले के सागबारा तालुका के ओलगाम में जंगल भूमि पर खेती करने वाले किसानों और उकाई डैम में प्लॉटिंग सोलर प्रोजेक्ट से प्रभावित लोगों से AAP विधायक चैतर वसावा ने मुलाकात की। लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि 1500 मेगावाट का जो सोलर प्रोजेक्ट मंजूर हुआ है, उसके विरोध में जब हमारे लोग गए तो उन पर FIR दर्ज कर 18 लोगों को जेल में डाल दिया गया। अब हम सभी को एकजुट होना पड़ेगा। सोलर प्रोजेक्ट, सापुतारा से स्टैच्यू ऑफ यूनिटी तक का कॉरिडोर, हाई-स्पीड कॉरिडोर, हाउसिंग सोसायटी, अभयारण्य जैसे कई प्रोजेक्ट आने वाले हैं। ऐसे में आने वाली पीढ़ी के बच्चों के लिए जमीन और जंगल बचें और संविधान द्वारा मिले अधिकार सुरक्षित रहें, इसके लिए हमें सक्रिय रहना होगा। जब भी जरूरत पड़े, हमें एकजुट होना होगा और जब भी लड़ना पड़े, एक होकर लड़ना होगा। चाहे जरूरत उकाई वालों की हो या केवड़िया वालों की, हम सभी को मौजूद रहना होगा। जहां कहीं भी आदिवासियों की जमीन छीने जाने की बात होगी, वहां एक आदिवासी के रूप में हम उपस्थित रहेंगे। हम आपके साथ हैं। किसी भी तरह की समस्या हो तो हमें बताइए, मेरी पूरी टीम आपके साथ है। गांधीनगर में विधानसभा के बजट सत्र के दौरान पूरे गुजरात के आदिवासियों को बुलाकर न्याय की दिशा में आगे बढ़ेंगे।
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चैतर वसावा ने आगे कहा कि केवल सूरत और तापी ही नहीं, बल्कि पूरे गुजरात के लोगों को हम आमंत्रित करेंगे और सभी को गांधीनगर बुलाएंगे। बजट सत्र के दौरान गांधीनगर में हमारा एक कार्यक्रम होना चाहिए। हम वहां किसी से लड़ने नहीं, बल्कि अपनी एकता दिखाने और अपनी मांगों को रखने जाएंगे। पिछली विधानसभा में पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति के मुद्दे पर मैं तीन-चार हजार छात्रों के साथ विधानसभा का घेराव करने गया था, जिसके बाद सरकार को घोषणा करनी पड़ी और छात्रवृत्ति शुरू करने की बात करनी पड़ी। इसलिए हमें इसी तरह एकता दिखानी होगी। अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए तैयार रहना होगा। आदिवासी समाज अलग-अलग तरीके से लड़ने के बजाय एकजुट होकर एक बैनर के तहत गांधीनगर तक अपनी बात पहुंचाए—ऐसा काम करना होगा।
चैतर वसावा ने आगे कहा कि आज अंबाजी से उमरगाम तक का क्षेत्र हो या छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, मिजोरम, मेघालय या मणिपुर—हर जगह आदिवासी समाज संघर्ष कर रहा है। मणिपुर में भी जमीन की लड़ाई चल रही है। इसके अलावा छत्तीसगढ़, झारखंड और असम में भी जल, जंगल और जमीन की लड़ाई जारी है। हसदेव के जंगल को एक झटके में खत्म कर लाखों हेक्टेयर जमीन अडाणी को खनन के लिए दे दी गई। पिछले वर्ष बेडापाणी नामक गांव में 32 झोपड़ियां तोड़ दी गईं। वन विभाग ने लोगों की झोपड़ियां जला दीं, उनकी पिटाई की और फर्जी FIR दर्ज कर उन्हें वहां से बाहर निकाल दिया। मैंने खुद वहां जाकर लोगों से मुलाकात की थी। पाडलिया में भी प्लांटेशन के नाम पर 13 तारीख को सुबह 10 बजे वनकर्मी पूरी पुलिस फोर्स के साथ पहुंचे। पुलिस पूरी तैयारी के साथ डंडे और हेलमेट पहनकर गई थी। वहां आदिवासी समाज के नेताओं ने शांतिपूर्वक कहा कि “यह जमीन हमें सनदों में मिली है और पीढ़ियों से लोग यहां रह रहे हैं,” इसके बावजूद जिस कुएं से लोग पानी पीते थे, उसे बंद कर दिया गया। प्लांटेशन के नाम पर एक महिला का घर गिरा दिया गया। जब हमारे नेता बात करने गए तो पुलिस जबरन उन्हें ले जाने लगी। गांव के लोग बीच में आए तो पुलिस ने लाठीचार्ज किया, 27 आंसू गैस के गोले छोड़े और 50 राउंड फायरिंग की। तो सवाल उठता है कि वन विभाग को इतना अधिकार कौन देता है? असल में उद्योगपति नेताओं को आगे करते हैं और नेता अधिकारियों पर दबाव डालते हैं, और इसी तरह जमीनें खाली करवाई जाती हैं।
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