Hanuman Janmotsav 2025: हनुमान जयंती पर इस विशिष्ट स्रोत को पढ़ें, आपका घर धन से भर जाएगा!

Hanuman Janmotsav 2025 kab: बजरंगबली हनुमान का जन्म चैत्र महीने की पूर्णिमा तिथि पर होता है। माना जाता है कि इस दिन हनुमान जी के इस विशिष्ट ग्रन्थ का पाठ करने से व्यक्ति को बड़े से बड़े कर्ज से छुटकारा मिल सकता है और अपार धनलाभ के योग बनेंगे।

Hanuman Janmotsav 2025: हिंदू धर्म में हनुमान जयंती बहुत महत्वपूर्ण है। शास्त्रों के अनुसार बजरंग बली हनुमान आज भी धरती पर विद्यमान हैं, उन्हें 8 चीरंजीवियों में से एक माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हनुमान चैत्र महीने की पूर्णिमा तिथि को माता अंजनी और राजा केसरी के घर पैदा हुए थे। इस दिन मंदिरों में भगवान राम, माता सीता और हनुमान जी की विशेष पूजा अर्चना और रामरचरितमास का पाठ भी किया जाता है। यह स्वीकार किया जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को संकट से छुटकारा मिलता है। वहीं हनुमान जयंती के अवसर पर इस शक्तिशाली स्रोत का पाठ करने से व्यक्ति को जीवन में कभी भी धन की कमी महसूस नहीं होती है।

हनुमान जयंती तिथि

हिंदू पंचांग के अनुसार, 12 अप्रैल को चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि, यानी हनुमान जयंती, सुबह 3 बजकर 21 मिनट पर शुरू होगी। साथ ही, तिथि अगले दिन 13 अप्रैल को सुबह 5 बजकर 51 मिनट पर समाप्त होगी। हनुमान जयंती 12 अप्रैल को मनाई जाएगी।

हनुमान तांडव स्तोत्र| Hanuman Tandav Stotra in hindi

वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम्।

रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥

भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं,

दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम्।

सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं,

समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्॥

सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं

वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न।

इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वान-

राऽधिनाथ आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः॥

सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना,

भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ।

कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ,

विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम्

सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः,

कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम्।

प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः

कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः॥

प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं,

फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत्।

विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्,

सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम्॥

नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं

गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम्।

सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं

विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम्॥

‘रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं

दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम्।

विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम्

सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम्॥

नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता

महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः।

सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां

निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम्॥

इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः

कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः।

प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा

न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह॥

नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे।

लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम्॥

ऋणमोचन मंगल स्तोत्र| Rinmochan Mangal Stotra

मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।

स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः।।

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।

धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः।।

अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।

व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः।।

तानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।

ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्।।

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।

कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्।।

स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।

न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्।।

अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।

त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय।।

ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।

भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा।।

अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।

तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात्।।

विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।

तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः।।

पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।

ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः।।

एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्। महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा”।।

इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।

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