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खाटू श्याम मेला 2022: असीम आस्था के केन्द्र हैं खाटू श्याम बाबा, जानें पूरा पौराणिक इतिहास और महत्ता

बाबा श्याम के लक्खी मेले का आज तीसरा दिन है। खाटू में हर तरफ चौबीसों घंटे भक्त श्याम नाम जप रहे हैं। बाबा के दर्शन के लिए देशभर से श्रद्धालु खाटू पहुंच रहे हैं। कोई पदयात्रा कर रहा है तो कोई पेट पलायन। पर क्या आप जानते हैं कि इनके भक्त जितने निराले हैं, उतनी ही बाबा श्याम का शीश मिलने और मंदिर बनने की कहानी भी अनोखी है। जी हां, आइए जानें इस मंदिर और बाबा श्याम का इतिहास।

इस कहानी की शुरुआत होती है बर्बरीक से, जिन्हें आज बाबा श्याम के रूप में पूजा जाता है। श्याम कुंड के शशि पुजारी का कहना है कि महाभारत के युद्ध के समय बर्बरीक ने भी युद्ध में भाग लेने की बात की थी। बर्बरीक ने युद्ध में हारने वाले की तरफ से लड़ने की बात कही। इस पर श्रीकृष्ण ने वेष बदलकर बर्बरीक से शीश का दान मांग लिया। शीश को महाभारत के युद्ध के बाद श्रीकृष्ण ने रूपवती नदी में बहा दिया था।

बर्बरीक का शीश रूपवती नदी में किया था प्रवाहित
श्याम कुंड में शशि पुजारी का कहना है कि महाभारत के युद्ध के समय बर्बरीक ने भी युद्ध में भाग लेने की बात की थी। तब श्रीकृष्ण ने वेश बदल कर रास्ता रोक लिया। बर्बरीक ने युद्ध में हारने वाले की तरफ से लड़ने का बोला। श्रीकृष्ण ने बर्बरीक का शीश काट दिया। बर्बरीक के शीश को महाभारत के युद्ध के बाद श्रीकृष्ण ने रूपवती नदी में बहा दिया था। बाद में शीश बहकर श्यामकुंड में आया था। कई शास्त्रों में शीश को रूपवती नदी में प्रवाहित करने की बात लिखी है। खाटू से नदी 1974 में लुप्त हो गई थी।

आइए जानते हैं मंदिर बनने का इतिहास को

-श्याम मंदिर कमेटी के अध्यक्ष प्रताप सिंह बताते हैं कि करीब 995 साल पहले ग्यारस के दिन ही बाबा का शीश श्यामकुंड में मिला था।

-यहां पर कुंए के पास एक पीपल का पेड़ था। यहां पर गायें दूध देकर जाती थीं। गायों के दूध देने से गांव वाले हैरत में थे।

-गांव वालों ने उस जगह जब खुदाई की तो बाबा श्याम का शीश मिला। शीश को चैहान वंश की नर्मदा कंवर को सौंप दिया।

-विक्रम संवत 1084 में मंदिर की स्थापना कराई। तब देवउठनी एकादशी थी और रविवार का दिन था।

-श्याम कुंड के पास ही आज भी वो पीपल का पेड़ है।

औंरगजेब ने तोड़ दिया था मंदिर

-राजा दशरथ के वंशज खटवांग के समय बाबा श्याम का शीश मिला था, उनके नाम पर गांव का नाम खाटू पड़ा और भगवान कृष्ण से श्याम नाम मिला।

-औरंगजेब की सेना ने विक्रम संवत 1736 में मंदिर पर आक्रमण कर दिया।

-भक्तों ने बाबा श्याम की प्रतिमा को शिवालय के पास छिपा दिया था।

-औरंगजेब की सेना ने मंदिर तोड़ दिया था।

औरंगजेब की मौत के 41 साल बाद बना नया मंदिर

-औरंगजेब की मौत के 41 साल बाद बाबा श्याम का नया मंदिर बना था।

-1777 संवत में मंदिर की स्थापना जोधपुर राजपरिवार ने कराई थी।

-नया मंदिर पुराने मंदिर से 150 मीटर की दूरी पर बनाया गया है।

-शीश पर बनी है मुकुट की आकृति

-इसी शीश पर चंदन का लेप किया जाता है।

-श्याम कुंड में मिला शीश कई मायनों में खास है।

-कहा जाता है कि इतना बड़ा रूप कहीं भी नहीं देखा गया था।

 

 

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