धर्म

यहाँ पितृपक्ष में पितरों का तर्पण श्राद्ध करना कल्याणकारी होता है, पितरों को मुक्ति मिलती है

पितृपक्ष

पितृपक्ष में अधिकांश लोग अपने घर पर ही ब्राह्मणों को भोजन करवारकर अपने पूर्वजों को श्राद्ध करते हैं। लेकिन कुछ लोग तीर्थस्थलों पर जाकर अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं और उनके लिए पिंडदान करते हैं। आज हम आपको कुछ ऐसे तीर्थस्थलों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां लोग मानते हैं कि यहां आकर अपने पिता का श्राद्ध करने से मोक्ष मिलता है। आइए आपको बताते हैं ये पवित्र स्थान कौन से हैं।

पितृपक्ष: तीर्थ को वायु पुराण, गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है। इस स्थान को श्राद्ध करने के लिए सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। पुराणों ने इस स्थान को मोक्ष की जमीन और मोक्ष स् थली कहा है। कहते हैं कि यहां आकर पितरों को श्राद्ध करने से वे मोक्ष पाते हैं। यहां हर साल पितृपक्ष में मेला लगता है। यह पितृ पक्ष मेला है।

ब्रह्मकपाल, बदरीनाथ उत्‍तराखंड

पितृपक्ष: बदरीनाथ के ब्रह्मकपाल घाट में कहा जाता है कि यहां किया गया पिंडदान गया से भी आठ गुना अधिक फलदायी होता है। कहते हैं कि यहां आकर मर चुके पूर्वजों का श्राद्ध करने से उनके आत्माओं को तुरंत छुटकारा मिलता है। यही स्थान था जहां भगवान शिव को ब्रह्महत्या के पाप से छुटकारा मिल गया था। बदरीनाथ धाम से थोड़ी दूरी पर अलकनंदा के तट पर यह स्थान है। माना जाता है कि पांडवों ने भी महाभारत युद्ध में अपने परिजनों को बचाने के लिए यहाँ अपना शरीर दे दिया था।

प्रयागराज, उत्‍तर प्रदेश

पितृपक्ष: पितरों को गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर तर्पण करना श्रेष्ठ है। इलाहाबाद में पितृपक्ष का एक बड़ा मेला होगा। यहां दूर-दूर से आने वाले लोग पिंडदान करते हैं और अपने पिता की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।

हरिद्वार, उत्‍तराखंड

हरिद्वार, उत्तराखंड के सबसे बड़े तीर्थस्थलों में से एक है, जहां लोग अपने पूर्वजों के अस्थिविसर्जन करते हैं. यहां श्राद्ध करने से भी पूर्वजों की आत्माओं को शांति मिलती है। यहाँ स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं, वहीं पितरों के नाम का पिंडदान करने से उनकी आत्मा प्रसन्न होकर आपको आशीर्वाद देती है।

अयोध्‍या, उत्‍तर प्रदेश

पूर्वजों ने भगवान राम की जन्मस्थली अयोध् या में सरयू नदी के तट पर स्नान करके अपनी आत्माओं को मुक्ति दी है। सरयू नदी के किनारे भात कुंड पर हर साल कर्म कांड होता है। यहां आने के बाद लोग पहले पवित्र नदी में स्नान करते हैं और फिर अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं।

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मथुरा, उत्‍तर प्रदेश

यमुनाजी के तट पर, भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा में, हर साल लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान करने आते हैं। यहीं पर, वायुतीर्थ में अंतिम संस्कार किया जाता है। यही नहीं, लोग विश्रनी तीर्थ और बोधिनी तीर्थ में पिंडदान करने जाते हैं।

पुष्‍कर, राजस्‍थान

राजस्थान का धार्मिक स् थल पुष् कर भी श्राद्ध का एक हिस्सा है। ब्रह्माजी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर यहीं है। यहां की पवित्र झील को भगवान विष्णु की नाभि से बनाया गया है, यह एक पौराणिक कहानी है। हर साल, 52 घाटों पर दूर-दूर से लोग पिंडदान करने आते हैं।

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उज्‍जैन, मध्‍य प्रदेश

भगवान विष्णु के शरीर से शिप्रा नदी निकली, जो महाकाल की नगरी उज्जैन से बहती है। हर साल, यहां बने घाटों पर श्राद्ध करने वालों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। महाकाल की नगरी में श्राद्ध करना पिता को पूरा करता है।

वाराणसी, उत्‍तर प्रदेश

पितरों को काशी, भगवान शिव की नगरी में श्राद्ध करना बहुत पुण्यपूर्ण है। कहते हैं कि काशी में मरने वाले को यमलोक नहीं जाना चाहिए। वैसे ही इस स्थान पर श्राद्ध करने से पूर्वजों की आत् मा परम शान्ति प्राप्त करती है। मणिकर्णिका घाट, काशी, गंगा नदी के तट पर होता है।

 

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