शिवमहापुराण: सावन में भगवान शिव ‘ससुराल’ क्यों गए थे? जानिए पौराणिक कनेक्शन

सावन का महीना भगवान शिव को क्यों प्रिय है? शिवमहापुराण के अनुसार मां पार्वती की तपस्या, शिवजी का ससुराल प्रवास और रुद्राभिषेक की मान्यताओं के पीछे छिपा है गहरा आध्यात्मिक रहस्य। यहां जानें सावन और महादेव का दिव्य संबंध।

शिवमहापुराण: सावन का पवित्र महीना 11 जुलाई से शुरू हो चुका है और हर मंदिर में शिवभक्तों की आस्था की लहर दिखाई दे रही है। धार्मिक मान्यताओं में इसे भगवान शिव का प्रिय समय माना जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है—’शिवमहापुराण’ में वास्तव में सावन और शिवजी का क्या रहस्य जुड़ा है? आइए जानें इस दिव्य माह के पीछे की प्राचीन कहानियां और आध्यात्मिक महत्व:

मां पार्वती का 107वें जन्म में तपस्या-प्रेम

शिवमहापुराण में वर्णित है कि माता पार्वती ने सावन के समय कठिन तपस्या की। यह तप उनकी भगवान शिव के प्रति सच्ची भक्ति और प्रेम का प्रतीक थी। आध्यात्मिक सूत्र के अनुसार, उन्होंने 107 जन्मों में तप किया और 108वें जन्म में शिवजी के साथ परिणय सूत्र में बंधीं। यही कारण है कि सावन उनका प्रिय माह माना जाता है।

शिवमहापुराण: रुद्राभिषेक का महत्व, देवशयनी और रुद्रावतार

शास्त्रों के अनुसार, देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु और चतुर्दशी पर शिवजी विश्राम में चले जाते हैं। उस समय उनका स्वभाव भावनात्मक और तेज हो जाता है। इसलिए सावन में रुद्राभिषेक करने की परंपरा है ताकि उनकी कृपा प्राप्त हो और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण हों।

ससुराल प्रवास की पौराणिक कथा

आपने शायद सुना होगा कि सावन ही वह समय था जब भगवान शिव पृथ्वी पर आए और अपने ससुराल में रहे। इसे लेकर एक कथा भी प्रसिद्ध है—राजा दक्ष की पत्नी ने शिवजी का सादर स्वागत किया और पूरा सावन भगवान शिव ने वहां सम्मान और आदर से बिताया। ऐसा कहने का तात्पर्य है कि शिवजी सावन के दौरान भक्तों के बीच आते हैं और पापों का विनाश करते हैं।

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