उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कारागार प्रशासन एवं सुधार सेवाएं विभाग की समीक्षा बैठक में बंदियों की समयपूर्व रिहाई से संबंधित नियमों को और अधिक सरल, स्पष्ट और मानवीय बनाने पर जोर दिया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह प्रक्रिया निष्पक्ष, त्वरित और समाज की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए होनी चाहिए।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निर्देश दिए हैं कि गंभीर बीमारियों से पीड़ित बंदियों की समयपूर्व रिहाई के नियमों को पुनः परिभाषित किया जाए। इसके तहत ऐसे बंदी जिन्हें प्राणघातक रोग हो या जिनकी मृत्यु की संभावना निकट भविष्य में हो, वृद्ध या अशक्त बंदी, तथा वे बंदी जिनके रिहाई से समाज में कोई खतरा न हो, उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी। इसके लिए प्रदेश के सभी जेलों में सर्वेक्षण कर वास्तविक संख्या का आकलन किया जाएगा।
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उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हत्या, आतंकवाद, देशद्रोह, महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध जघन्य अपराधों के मामलों में किसी भी प्रकार की समयपूर्व रिहाई नहीं दी जाएगी। साथ ही बंदियों को कृषि, गोसेवा जैसे कामों से जोड़ा जाएगा ताकि उनकी जेल अवधि का सदुपयोग हो सके।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि पात्र बंदियों के मामलों की समीक्षा हर साल जनवरी, मई और सितंबर में स्वतः होनी चाहिए और जिन बंदियों को रिहाई न मिले, उन्हें कारण स्पष्ट कर उन्हें फैसले को चुनौती देने का अधिकार दिया जाएगा। इस दौरान अधिकारियों ने मुख्यमंत्री को बताया कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) द्वारा सुझाई गई प्रणाली को यूपी में भी अपनाने पर विचार किया जा रहा है ताकि बंदियों को न्यायिक अधिकारों का बेहतर लाभ मिल सके।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा, “समाज की सुरक्षा सर्वोपरि है, इसलिए समयपूर्व रिहाई उन्हीं मामलों में होनी चाहिए जहां से सामाजिक जोखिम न हो।” यह नई नीति जल्द ही तैयार कर अनुमोदन के लिए प्रस्तुत की जाएगी, जिससे यूपी की जेल व्यवस्था में पारदर्शिता और सुधार आएगा।
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