उज्जैन में मुख्यमंत्री रात को क्यों नहीं रुकते? जानें महाकाल की नगरी से जुड़ी वह रहस्यमयी धार्मिक मान्यता, जिसके पीछे छुपा है आध्यात्मिक रहस्य।
उज्जैन में मुख्यमंत्री रात में क्यों नहीं रुकते? मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन को लेकर एक प्राचीन मान्यता है कि यहां का कोई भी मुख्यमंत्री रात में नहीं रुकते। आखिर क्यों? इसके पीछे क्या है धार्मिक और ऐतिहासिक रहस्य? आइए जानते हैं।
महाकाल की नगरी उज्जैन का महत्व
उज्जैन, जिसे “महाकाल की नगरी” कहा जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र स्थल माना गया है। यहां स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और विशेष रूप से दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर न केवल आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण है बल्कि कई रहस्यमयी परंपराओं और मान्यताओं के लिए भी प्रसिद्ध है।
उज्जैन में मुख्यमंत्री रात में क्यों नहीं रुकते?
एक बहुत ही दिलचस्प और गहरी धार्मिक मान्यता है कि उज्जैन में कोई भी राजा या मुख्यमंत्री रात के समय नहीं रुक सकता, क्योंकि उज्जैन के असली राजा स्वयं महाकाल हैं।
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धार्मिक ग्रंथों और जनमान्यता के अनुसार, जो भी राजा यहां रात भर ठहरता है, उसका “राजपाट” छिन जाता है।
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इसलिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को उज्जैन में दर्शन करने के बाद रात से पहले शहर छोड़ना अनिवार्य माना जाता है।
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यह प्रथा इतनी गहरी है कि आज भी कोई मुख्यमंत्री या उच्चाधिकारी रात को उज्जैन में ठहरने से परहेज करते हैं।
क्या है इसका ऐतिहासिक संदर्भ?
कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य के बाद से कोई भी शासक उज्जैन में मुख्यमंत्री रात नहीं रुका।
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उज्जैन को कालों के भी काल, महाकाल की नगरी माना गया है।
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चूंकि महाकाल ही यहां के शासक हैं, इसलिए यहां किसी दूसरे “राजा” के ठहरने को अशुभ माना जाता है।
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हालांकि इसके पीछे कोई पुख्ता ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, लेकिन मान्यता इतनी मजबूत है कि इसे आज भी पूरी श्रद्धा के साथ निभाया जाता है।
महाकालेश्वर मंदिर की विशेषताएं
महाकालेश्वर मंदिर को दुनिया भर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर की कुछ विशेष बातें:
स्वयंभू शिवलिंग
इस मंदिर का शिवलिंग स्वतः प्रकट हुआ है, इसे किसी मानव ने स्थापित नहीं किया।
दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग
यह भारत का एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है, जो इसे अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों से अलग बनाता है।
भस्म आरती
यहाँ प्रातःकालीन भस्म आरती होती है, जिसमें भगवान शिव का श्रृंगार चिता की भस्म से किया जाता है — यह परंपरा दुनिया में कहीं और नहीं है।
नागचंद्रेश्वर मंदिर
मंदिर के ऊपरी तल पर स्थित यह मंदिर साल में केवल एक बार नागपंचमी पर खुलता है।
प्राचीन गणना केंद्र
प्राचीन काल में समय और पंचांग की गणना का केंद्र बिंदु महाकालेश्वर मंदिर ही था।
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