क्या है Cloud Seeding?
Cloud Seeding: गोपाल राय के साथ एक बैठक में आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने कहा कि Cloud Seeding के माध्यम से नकली बारिश केवल तब हो सकती है जब वातावरण में बादल या नमी हो।
दिल्ली, देश की राजधानी, पिछले दस दिनों से प्रदूषण से परेशान है। लोग सांस लेने की समस्या, आंखों में जलन, गले में खराश और सर्दी-जुखाम सहित कई समस्याओं से जूझ रहे हैं क्योंकि वायु प्रदूषण गंभीर स्तर पर है। दिल्ली सरकार ने ग्रैप-4 नियम बनाया है, जो स्कूलों को बंद करने से लेकर कमर्शियल वाहनों को शहर में घुसने तक पर रोक लगाता है। अब ऑड-ईवन कार्यक्रम को लागू करने का विचार है। इस बीच, केजरीवाल सरकार ने Cloud Seeding के जरिए आर्टिफिशियल बारिश (नकली बारिश) कराकर दिल्ली को प्रदूषण से बचाने की योजना बनाई है। हालाँकि, अभी अंतिम निर्णय लेना बाकी है।
ऐसा हुआ तो भारत में ऐसी बारिश का पहला मामला होगा। वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली पहला उदाहरण बन जाएगा। दिल्ली सरकार Cloud Seeding तकनीक का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही है। इस विषय पर पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने भी आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों से मुलाकात की है। IIST कानपुर के वैज्ञानिकों ने कहा कि Cloud Seeding के माध्यम से नकली बारिश करना तभी संभव है जब वातावरण में बादल या नमी हो। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार ऐसा 20 या 21 नवंबर के आसपास हो सकता है। वैज्ञानिकों की टीम गुरुवार को दिल्ली सरकार को एक सुझाव देने वाली है। इस प्रस्ताव को लागू करने से पहले सुप्रीम कोर्ट के सामने प्रस्तुत किया जाएगा।”
IIT कानपुर को जून में मिली थी सफलता
दरअसल, 2017 से आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों की एक टीम Cloud Seeding के माध्यम से आर्टिफिशियल बारिश (नकली बारिश) बनाने की तकनीक पर काम कर रही है। इस तकनीक को जून 2023 में आईआईटी कानपुर ने आर्टिफिशियल बारिश करने में कामयाबी हासिल की। Cloud Seeding टेक्नोलॉजी का उपयोग करके आईआईटी कानपुर की टीम ने बादलों में एक केमिकल पाउडर छिड़का, जिससे पानी की बूंदें बनने लगीं। ऐसा करने के कुछ देर बाद आसपास बारिश होने लगी। सेना भी कानपुर टीम के साथ काम करती थी।
क्लाउड सीडिंग क्या है?
1940 के दौर से ही वैश्विक स्तर पर Cloud Seeding पर काम जारी है। Cloud Seeding एक वैज्ञानिक उपाय है जो मौसम को बदलता है। इस प्रक्रिया के दौरान आर्टिफिशियल बारिश होती है। Cloud Seeding प्रक्रिया में छोटे-छोटे विमान बादलों के बीच से गुजरते हैं। सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और क्लोराइड इन विमानों से बाहर निकल जाते हैं। इससे बादलों में पानी जम जाता है। बाद में ये पानी की बूंदें बारिश बनकर जमीन पर गिरती हैं। क्लाउड सीडिंग से प्रेरित आर्टिफिशियल बारिश अधिक तेज होती है।
किन-किन देशों में हो रहा है काम
2017 की एक रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध वर्ल्ड मीटियरोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन ने कहा कि दुनिया के 50 से ज्यादा देशों ने Cloud Seeding को आजमाया है। इसमें चीन, अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं। चीन ने 2008 बीजिंग ओलंपिक के दौरान वेदर मोडिफिकेशन सिस्टम का उपयोग करके पहले ही बारिश कर दी ताकि खेल बिगाड़ न दें। चीन ने वर्ष 2025 तक आर्टिफिशियल बारिश से 55 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करने का लक्ष्य रखा है। जापान ने टोक्यो ओलंपिक और फिर पैरालंपिक खेलों में भी आर्टिफिशियल रेन जनरेटर का बहुत उपयोग किया। यूएई ने 2022 में क्लाउड सीडिंग के जरिए इतनी भारी बारिश कराई कि बाढ़ हुई। इसके माध्यम से, थाईलैंड सरकार 2037 तक सूखाग्रस्त क्षेत्रों को पुनर्वास करना चाहती है।
फेसबुक और ट्विटर पर हमसे जुड़ें और अपडेट प्राप्त करें:
facebook-https://www.facebook.com/newz24india