Kalashtami 2025: कालाष्टमी कब है? भगवान शिव की इस विधि से पूजा करें

Kalashtami 2025: प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मासिक कृष्ण जन्माष्टमी (Masik Krishna Janmashtami 2025) भी मनाई जाती है। इस शुभ अवसर पर श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है।
Kalashtami 2025: कालाष्टमी हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस शुभ अवसर पर भगवान शिव का रौद्र रूप काल भैरव पूजा जाता है। कालाष्टमी का व्रत भी रखा जाता है ताकि मनचाहा वरदान मिल सके। यह व्रत करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही सुख और सौभाग्य बहुत बढ़ जाते हैं। साधक को काल भैरव देव की कृपा से शारीरिक और मानसिक पीड़ा से छुटकारा मिलता है। हम अप्रैल की कालाष्टमी की सही तिथि और शुभ मुहूर्त जानते हैं:
कालाष्टमी शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, 20 अप्रैल को शाम 7 बजे वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि शुरू होगी। 21 अप्रैल को शाम 06 बजकर 58 मिनट पर वैशाख मास की अष्टमी तिथि समाप्त होगी। काल भैरव की पूजा निशा काल में की जाती है। इसके लिए 20 अप्रैल को वैशाख की कालाष्टमी मनाई जाएगी। साथ ही, निशा काल में पूजा देर रात 11 बजकर 58 मिनट से 12 बजकर 42 मिनट तक चलती है।
कालाष्टमी शुभ योग
ज्योतिषियों के अनुसार वैशाख की कालाष्टमी पर सिद्ध और शिववास का संयोग होगा। शिववास योग शाम 7 बजे से शुरू होगा। इस दौरान देवों के देव महादेव और जगत की देवी पार्वती कैलाश पर रहेंगे। शिववास योग में काल भैरव की पूजा करने से साधक दोगुना लाभ प्राप्त करेगा। साथ ही सभी बिगड़े काम बन जाएंगे। वहीं, सिद्ध योग में काल भैरव देव की पूजा करने से शुभ कामों में सफलता मिलेगी।
पंचांग
सूर्योदय – सुबह 05 बजकर 51 मिनट पर
सूर्यास्त – शाम 06 बजकर 50 मिनट पर
ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04 बजकर 22 मिनट से 05 बजकर 06 मिनट तक
विजय मुहूर्त – दोपहर 02 बजकर 30 मिनट से 03 बजकर 22 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त – शाम 06 बजकर 49 मिनट से 07 बजकर 11 मिनट तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 11 बजकर 58 मिनट से 12 बजकर 42 मिनट तक
पूजा प्रक्रिया
वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर ब्रह्म बेला में उठें। अब भगवान शिव को प्रणाम कर दिन शुरू करें। इसके बाद घर को साफ करो। सभी कार्यों को पूरा करने के बाद गंगाजल से स्नान करें। इसके बाद सूर्य देव को जल अर्पित करके आचमन करें। इसके बाद भक्तिपूर्वक महादेव की पूजा करें। सफेद फल, फूल और मिष्ठान भगवान शिव को अर्पित करें। पूजा करते समय शिव चालीसा पढ़ें। संध्याकाल में वहीं भगवान शिव की आरती करें। समय होने पर मंदिर जाकर काल भैरव के दर्शन करें।