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पंजाब में लैंड पूलिंग पॉलिसी 2025 रद्द: किसानों की जीत, भगवंत मान सरकार ने मानी मांग

पंजाब सरकार ने किसानों की मांग मानते हुए लैंड पूलिंग पॉलिसी 2025 को रद्द किया। हाईकोर्ट की रोक और विरोध के बाद लिया गया बड़ा फैसला।

पंजाब सरकार ने किसानों के दबाव और विरोध को ध्यान में रखते हुए लैंड पूलिंग पॉलिसी 2025 को औपचारिक रूप से वापस ले लिया है। यह निर्णय मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा लिया गया, जिसे किसान संगठनों और विपक्ष ने एक बड़ी जीत करार दिया है।

 लैंड पूलिंग पॉलिसी 2025 को लेकर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की ओर से भी अंतरिम रोक पहले ही लगाई जा चुकी थी। अब सरकार ने किसानों की भावना का सम्मान करते हुए इस नीति को रद्द कर दिया है।

क्या थी लैंड पूलिंग पॉलिसी 2025?

पंजाब सरकार द्वारा 5 जून 2025 को लागू की गई नई लैंड पूलिंग पॉलिसी 2025 के तहत, किसानों से शहरी विकास के लिए जमीन लेकर बदले में उन्हें रिहायशी और व्यवसायिक प्लॉट देने की योजना बनाई गई थी। इसमें प्रावधान था:

  • 1 एकड़ जमीन देने पर 1000 गज रिहायशी और 200 गज व्यवसायिक प्लॉट

  • 1 कनाल के बदले 150 गज रिहायशी प्लॉट

  • 9 एकड़ जमीन देने पर 3 एकड़ ग्रुप हाउसिंग साइट

  • 50 एकड़ भूमि देने पर 30 एकड़ आवासीय और व्यवसायिक उपयोग की भूमि

हालांकि, नीति लागू होने के तुरंत बाद किसान संगठनों और राजनीतिक दलों ने विरोध जताया। विपक्ष ने इसे किसान विरोधी और भूमि हड़पने की नीति करार दिया था।

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हाईकोर्ट की रोक और सरकार का निर्णय

नीति को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। इसके बाद कोर्ट ने 13 सितंबर 2025 तक के लिए लैंड पूलिंग पॉलिसी पर अंतरिम रोक लगा दी थी। अब सरकार ने औपचारिक रूप से नीति को रद्द करने का आदेश जारी कर दिया है।

राज्य के आवास और शहरी विकास विभाग के प्रमुख सचिव ने आदेश जारी कर स्पष्ट किया कि पॉलिसी से जुड़े सभी संशोधन, निर्देश और पंजीकरण रद्द किए जाते हैं।

सरकार का बयान: किसानों के बिना नहीं बनेगी कोई नीति

सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि, “पंजाब सरकार किसानों की सहमति और भागीदारी के बिना कोई भी विकास योजना लागू नहीं करेगी। यह सिर्फ एक पॉलिसी वापसी नहीं, बल्कि किसानों के साथ विश्वास और सम्मान के रिश्ते को और मजबूत करने का निर्णय है।”

किसानों की जीत या सरकार का दबाव?

जहाँ किसान संगठनों ने इसे जनता की जीत बताया है, वहीं राजनीतिक विश्लेषक इसे सरकार के खिलाफ बढ़ते दबाव और विरोध का परिणाम मानते हैं। आम आदमी पार्टी के कई नेताओं ने भी सार्वजनिक रूप से पॉलिसी के खिलाफ राय दी थी, जिससे सरकार को पीछे हटना पड़ा।

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