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धर्म

कन्या पूजन: नवरात्रि के अलावा कब-कब किया जा सकता है कन्या पूजन, जानिए शास्त्रीय महत्व और विधि

कन्या पूजन का शास्त्रों में विशेष महत्व बताया गया है। जानें नवरात्रि के अलावा कन्या पूजन कब किया जा सकता है, इसका धार्मिक महत्व और सही विधि।

कन्या पूजन हिंदू धर्म में अत्यंत पुण्यदायी और फलदायी अनुष्ठान माना गया है। शास्त्रों और पुराणों में कन्या को देवी दुर्गा का जीवंत स्वरूप बताया गया है। मान्यता है कि कन्या पूजन से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन से दुख, रोग व बाधाएं दूर होती हैं। आमतौर पर लोग नवरात्रि की अष्टमी और नवमी पर कन्या पूजन करते हैं, लेकिन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसके अलावा भी कई अवसर ऐसे हैं जब कन्या पूजन करना शुभ माना जाता है।

नवरात्रि के अलावा कब करें कन्या पूजन

मांगलिक कार्यों के बाद: घर में विवाह, गृह प्रवेश, संतान जन्म या कोई बड़ा शुभ कार्य संपन्न होने पर कन्या पूजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।

तीर्थ यात्रा से लौटने पर: जब कोई व्यक्ति तीर्थ यात्रा पूरी कर सुरक्षित घर लौटता है, तो देवी-देवताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए कन्या पूजन किया जाता है। विशेष रूप से वैष्णो देवी, ज्वाला देवी, नैना देवी जैसे शक्तिपीठों से लौटने के बाद यह परंपरा निभाई जाती है।

मासिक दुर्गा अष्टमी या नवमी: कई श्रद्धालु हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी या नवमी को कन्याओं को भोजन कराते हैं। यदि किसी कारण से कन्याओं को घर बुलाना संभव न हो, तो खीर या प्रसाद का वितरण भी पुण्यदायी माना जाता है।

मनोकामना पूर्ण होने पर: जब किसी भक्त की कोई विशेष इच्छा पूरी हो जाती है, तो वह धन्यवाद स्वरूप कन्या पूजन कर कन्याओं का आशीर्वाद लेता है।

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कन्या पूजन का धार्मिक महत्व

देवी पुराण के अनुसार जिस घर में कन्या पूजन किया जाता है, वहां मां लक्ष्मी का वास होता है। यह पूजा व्यक्ति के भीतर सेवा, करुणा और विनम्रता की भावना विकसित करती है, जिससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

कन्या पूजन की सही विधि

  • 2 से 10 वर्ष की कन्याओं को आदरपूर्वक घर आमंत्रित करें।

  • स्वच्छ स्थान पर उन्हें आसन देकर उनके चरण धोएं और आशीर्वाद लें।

  • माथे पर अक्षत, कुमकुम और पुष्प अर्पित करें।

  • श्रद्धा के साथ भोजन कराएं।

  • भोजन के बाद अपनी सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा या उपहार दें और पुनः चरण स्पर्श कर आशीष प्राप्त करें।

कन्या पूजन केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि नारी शक्ति के सम्मान और ईश्वरीय कृपा प्राप्त करने का माध्यम भी है।

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