अनंत चतुर्दशी 2025: जानिए पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और बन रहे हैं खास योग
अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु और गणेश जी की पूजा का विशेष महत्व होता है। जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, रक्षा सूत्र बांधने का नियम और बन रहे शुभ योग।
अनंत चतुर्दशी का पर्व सनातन धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह दिन न केवल गणेश उत्सव के समापन का प्रतीक होता है, बल्कि भगवान विष्णु और शेषनाग जी की पूजा के लिए भी अति शुभ माना जाता है। इस दिन श्रद्धालु अनंत रक्षा सूत्र बांधकर सुख, सौभाग्य और शांति की कामना करते हैं।
अनंत चतुर्दशी का धार्मिक महत्व
अनंत चतुर्दशी को भगवान विष्णु के “अनंत” स्वरूप की उपासना के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन अनंत रक्षा सूत्र बांधने से जीवन में आने वाली सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं। साथ ही, इस दिन की गई पूजा से व्यक्ति को लंबी आयु, समृद्धि और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा का महत्व
अनंत चतुर्दशी के दिन एक विशेष व्रत कथा सुनने और सुनाने की परंपरा है। इस कथा में भगवान विष्णु द्वारा ‘अनंत’ नाम के रूप में संसार की रक्षा करने और कठिनाइयों से मुक्ति दिलाने की कथा है। व्रतधारी पुरुष इस दिन 14 गांठों वाला धागा (अनंत सूत्र) बांधते हैं, जिसे सालभर तक पहना जाता है।
पूजा का शुभ समय
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पूजन आरंभ: प्रातः 05:21 बजे से
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पूजन समाप्ति: देर रात 01:41 बजे तक
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इस अवधि में कभी भी श्रद्धापूर्वक भगवान विष्णु, शेषनाग और देवी लक्ष्मी की पूजा की जा सकती है। पूजा में पंचामृत, पीला फूल, तुलसी, अनंत सूत्र और नारियल का विशेष महत्व होता है।
इस बार बन रहे हैं शुभ योग
इस अनंत चतुर्दशी पर बन रहे हैं विशेष सुकर्मा और रवि योग, जो पूजा को और भी फलदायी बनाते हैं। साथ ही, धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र का संयोग भी शुभ संकेत दे रहा है। इन योगों में की गई पूजा से साधक को संपूर्ण वर्ष के लिए शुभ फल प्राप्त होते हैं।
अनंत सूत्र बांधने की विधि
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अनंत सूत्र (14 गांठ वाला) को पूजा में भगवान विष्णु के समक्ष रखें।
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मंत्र जाप के बाद इसे पुरुष दाएं हाथ में और महिलाएं बाएं हाथ में बांधें।
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बांधते समय “अनंताय नमः” मंत्र का उच्चारण करें।
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मान्यता है कि यह सूत्र रक्षा कवच की तरह कार्य करता है।
गणेश उत्सव का समापन
अनंत चतुर्दशी पर ही गणेश चतुर्थी से आरंभ हुआ गणेश उत्सव अपने समापन पर पहुंचता है। इस दिन भक्तजन गणपति बप्पा की मूर्तियों का विसर्जन करते हैं और उन्हें भावभीनी विदाई देते हैं। साथ ही, अगले वर्ष फिर आने का निमंत्रण भी देते हैं – “गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ।”
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