भस्म आरती: महाकाल की पूजा में भस्म आरती क्यों है अनिवार्य? जानें रहस्य और महत्व
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर भगवान शिव का एक प्रमुख ज्योतिर्लिंग है, जो अपनी अनूठी भस्म आरती के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। महाकाल की भस्म आरती भगवान शिव को समर्पित सबसे प्रिय अनुष्ठानों में से एक मानी जाती है। यह आरती केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के गहरे सत्य का प्रतीक भी है।
भस्म आरती का रहस्य और महत्व
भस्म आरती जीवन के नश्वर और क्षणिक स्वरूप का प्रतीक है। भगवान शिव, जिन्हें महाकाल कहा जाता है, समय और मृत्यु के नियंत्रक हैं। भस्म के माध्यम से यह संदेश दिया जाता है कि भौतिक सुख-सुविधाएं क्षणिक हैं, जबकि आत्मा अमर है। मंदिर में ब्रह्म मुहूर्त में की जाने वाली भस्म आरती से महाकाल का निराकार रूप देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति होती है और नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है, जिससे सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।
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भस्म आरती और वैराग्य
भस्म आरती जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति का प्रतीक है। पहले महाकाल के शृंगार के लिए श्मशान घाट की राख का इस्तेमाल किया जाता था, जो पंचतत्वों में विलीन हुई देह की प्रतीक थी। आजकल गाय के गोबर और चंदन से बनी शुद्ध भस्म का प्रयोग होता है। यह न केवल नकारात्मक ऊर्जा दूर करती है, बल्कि वैराग्य, त्याग और आत्मा की शुद्धि का प्रतीक भी मानी जाती है।
भस्म आरती महाकालेश्वर मंदिर में एक ऐसा अनुष्ठान है, जो श्रद्धालुओं को जीवन-मृत्यु, त्याग और आध्यात्मिक ज्ञान की सीख देता है।
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