Bhaum Pradosh Vrat Katha: हनुमान जी से जुड़ी ये कहानी भौम प्रदोष व्रत में जरूर पढ़ें।

Bhaum Pradosh Vrat Katha: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन देवों के देव महादेव की पूजा-अर्चना की जाती है। त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष व्रत रखने से जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है।
Bhaum Pradosh Vrat Katha: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन देवों के देव महादेव की पूजा-अर्चना की जाती है। प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि पर रखा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष व्रत रखने से जीवन में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है और सभी दुख-कष्ट से छुटकारा मिलता है। आज फाल्गुन माह है। 11 मार्च को फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत है। 11 मार्च मंगलवार है। भौम प्रदोष व्रत मंगलवार को होता है। प्रदोष व्रत करने वाले लोग ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करते हैं, फिर भगवान का ध्यान करते हुए व्रत शुरू करते हैं। इसके बाद चावल, बेल पत्र, फूल, धूप, दीप, फल, पान, सुपारी आदि भगवान शिव को चढ़ाए जाते हैं। दिन भर भगवान शिव के मंत्र जाप किए जाते हैं। प्रदोष व्रत के दिन व्रत कथा भी पढ़नी चाहिए। प्रदोष व्रत कथा को आगे पढ़ें-
व्रत कथा
एक शहर में एक बुढ़िया रहती थी। उसका एकमात्र पुत्र था। वृद्धा की हनुमानजी पर गहरी आस्था थी। वह मंगलवार को नियमित रूप से व्रत रखकर हनुमानजी की पूजा करती थी। हनुमानजी ने एक बार अपनी श्रद्धा की जांच करने का विचार किया। हनुमानजी ने साधु की पोशाक पहनकर एक बुढ़िया के घर गए और पूछने लगे कि क्या कोई हनुमानभक्त हमारी इच्छा पूरी कर सकता है? पुकार सुन वृद्धा बाहर आई और बोली- आज्ञा महाराज।
हनुमान (वेशधारी साधु) बोले- मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा, तू थोड़ी जमीन लीप दे।। वृद्धा घबरा गई। अंततः, हाथ जोड़कर महाराज से कहा। लीपने और मिट्टी खोदने के अलावा आप मुझे कोई और आदेश दें, मैं उन्हें निश्चित रूप से पूरा करूंगी। तीन बार प्रतिज्ञा करने के बाद साधु ने कहा कि तुम अपने बेटे को बुला लो। मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा। वृद्धा यह सुनकर डर गई, लेकिन उसने वादा किया। उसने अपने पुत्र को बुला लिया और उसे साधु के हवाले कर दिया।
वृद्धा के हाथों से ही उसके पुत्र को पेट के बल लिटाकर साधु हनुमानजी ने उसकी पीठ पर आग लगाई।आग जलाकर दु:खी मन से वृद्धा अपने घर में चली गई। इधर भोजन बनाकर साधु ने वृद्धा को बुलाकर कहा- तुम अपने पुत्र को पुकारो ताकि वह भी आकर भोग लगा ले। इस पर वृद्धा बोली- उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न पहुंचाओ।”
लेकिन जब साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने अपने पुत्र को आवाज लगाई। वृद्धा अपने पुत्र को जीवित देख आश्चर्य से गिर पड़ी और साधु के चरणों में गिर पड़ी। हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को भक्ति का आशीर्वाद दिया।