मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के निर्देशों के बाद दिल्ली सरकार ने जन सुनवाई शिविरों में अधिकारियों की उपस्थिति को अनिवार्य कर दिया है। डिविजनल कमिश्नर के आदेश के तहत, जो भी अधिकारी बिना पूर्व अनुमति के जन सुनवाई शिविरों में गैरहाजिर पाए जाएंगे, उनके खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
मुख्यमंत्री ने 7 अप्रैल को हुई बैठक में सभी जिलों में सप्ताह में कम से कम एक जन सुनवाई शिविर आयोजित करने का निर्देश दिया था। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि इन शिविरों में केवल नामित अधिकारी ही उपस्थित होंगे, उनके स्थान पर किसी प्रतिनिधि या जूनियर कर्मचारी को भेजना स्वीकार्य नहीं होगा। बाद में 4 जून को हुई समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री ने यह भी निर्देश दिए कि यदि कोई अधिकारी इन शिविरों में नहीं आ पाता है तो उसे पहले जिला मजिस्ट्रेट से अनुमति लेना अनिवार्य होगा।
हालांकि, समीक्षा में पता चला कि कुछ विभागों के अधिकारी और कर्मचारी जन सुनवाई शिविरों में नियमित रूप से मौजूद नहीं हो रहे थे, जिससे शिकायतों के समाधान में बाधा आ रही थी। इसे देखते हुए डिविजनल कमिश्नर ने सभी विभागों, दिल्ली नगर निगम, दिल्ली विकास प्राधिकरण और नई दिल्ली नगर पालिका परिषद के प्रमुखों को आदेश जारी किए हैं कि वे उप-मंडल या उपायुक्त स्तर के अधिकारियों को नियमित रूप से इन शिविरों में उपस्थित रहने के लिए नामित करें।
यह सख्त कदम दिल्ली सरकार की जनता की शिकायतों को गंभीरता से लेने और सरकारी सेवाओं में पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। अब अधिकारी जन सुनवाई शिविरों में नियमित उपस्थिति सुनिश्चित करेंगे, ताकि नागरिकों की समस्याओं का त्वरित और प्रभावी समाधान हो सके।
इस आदेश के बाद अधिकारियों की जवाबदेही बढ़ेगी और जनता को बेहतर सेवा मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
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