दिल्ली हाईकोर्ट ने फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ पर रोक लगाने से इंकार किया। कोर्ट ने कहा कि सेंसर बोर्ड के फैसले की समीक्षा का अधिकार अदालत के पास नहीं है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ की रिलीज़ पर रोक लगाने या उसके सर्टिफिकेशन में बदलाव की मांग वाली याचिकाओं को सुनने से इनकार कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि सेंसर बोर्ड द्वारा दिए गए सर्टिफिकेट की समीक्षा का अधिकार अदालत के पास नहीं है।
याचिकाओं का आधार
याचिकाकर्ता शकील अब्बास और अन्य ने कोर्ट में दावा किया कि फिल्म में इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है और यह सांप्रदायिक तनाव फैलाने का काम कर सकती है। उन्होंने सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) द्वारा जारी सर्टिफिकेट को चुनौती दी थी।
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सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने अदालत से कम से कम फिल्म के डिस्क्लेमर को बदलने की मांग भी की, लेकिन चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने सवाल किया, “क्या हम सुपर सेंसर बोर्ड हैं?” उन्होंने कहा कि कोर्ट के पास सीमित अधिकार हैं और कानून के दायरे में ही फैसले किए जा सकते हैं।
कोर्ट का निर्देश
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 की धारा 6 के तहत केंद्र सरकार के पास पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकते हैं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उसने फिल्म की विषयवस्तु पर कोई राय नहीं दी है और यदि केंद्र सरकार के पास याचिका जाएगी, तो उसे कानून के अनुसार निपटाया जाएगा।
विवादित फिल्म द ताज स्टोरी की रिलीज
‘द ताज स्टोरी’ 31 अक्टूबर को रिलीज़ होने वाली है। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि फिल्म के निर्माता और निर्देशक लगातार विवादित फिल्में बना रहे हैं, जिससे इतिहास को गलत ढंग से प्रस्तुत किया जा रहा है और समाज में तनाव फैल सकता है।
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