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Guthlee Ladoo Review: संजय मिश्रा की ये बेहतरीन फिल्म है, लेकिन जात-पात पर ऐसी फिल्में हमारे देश में कब तक बनती रहेंगी?

Guthlee Ladoo Review

Guthlee Ladoo Review: छोटी जात की साइकिल बड़ी जात की साइकिल को छूती है। उसे बहुत खरी-खोटी सुननी पड़ती है। फिर एक बड़ी जात वाली महिला उसे साफ सफाई के बदले पच्चीस रुपए देती है और २० रुपए जबरदस्ती वापस मांगती है। छोटी जात की महिला कहती है कि आप मेरे छुए पैसे कैसे रखेंगे, जबकि बड़ी जात की महिला कहती है कि लक्ष्मी है। लक्ष्मी के कमल में भी कीचड़ लगता है, लेकिन वह कमल ही है। फिल्म एक सही सवाल उठाती है कि जात-पात कब तक हमारे समाज में रहेगा और अगर छोटी जात की महिला एक अफसर बन जाती है तो बड़ी जात की महिला को हाथ मिलाने में कोई परेशानी नहीं होती लेकिन सफाई करने वाली महिला को छूने में भी परेशानी होती है। ये फिल्म आज की दुनिया में बनाई गई है, जो सवाल उठाती है कि ऐसी फिल्में कब तक बनती रहेंगी और अगर ऐसा हो रहा है तो कब तक होती रहेगी।

कहानी

Guthlee Ladoo Review: ये छोटी जाति के दो बच्चों, गुठली और लड्डू, की कहानी है। उनका परिवार सफाई करता है, लेकिन गुठली पढ़ना चाहता है।Guthlee Ladoo Review:  स्कूल की खिड़की से वह सब कुछ जानता है जो स्कूल में बैठे बच्चे नहीं जानते. फिर भी, छोटी जाति का होने के कारण उसे स्कूल में दाखिला नहीं मिलता। पहले स्कूल के प्रिंसिपल संजय मिश्रा उसे नापसंद करते थे, लेकिन अब वे चाहते हैं कि उसे एडमिशन मिल जाए। गुठली के पिता भी कोशिश करते हैं कि उसका बेटा पढ़ ले, लेकिन क्या वह पढ़ पाता है? क्या बड़ी जाति के बच्चों के साथ एक छोटी जाति का बच्चा स्कूल में पढ़ पाता है? यही फिल्म की कहानी है, जो आपको कभी-कभी परेशान करती है और सोचने पर मजबूर करती है।

कैसी है फिल्म 

Guthlee Ladoo Review: फिल्म में स्कूल हेडमास्टर बनने वाले संजय मिश्रा बताते हैं पूजा पर ध्यान नहीं देना चाहिए..।सरस्वती पूजा को देखें। लक्ष्मी खुद चलकर घर आ जाएगी, लेकिन क्या पढ़ाई और लक्ष्मी सिर्फ बड़े जाति वालों का अधिकार है? फिल्म एक-एक करके कई सवाल उठाती है, Guthlee Ladoo Review: जो आपको जायज लगते हैं और आपको सोचने को मजबूर करते हैं कि क्या ऐसा आज भी होता है। एक सीन में, गुठली अपनी मां से कहता है कि हलवाई का बेटा भी अपने घर की सफाई करता है, इसलिए वह भी उसी जाति का था जिसके हम हैं. उसकी मां कहती है कि वह अपने घर में सफाई करता है और हम बाहर हैं, लेकिन गुठली कहती है कि वह घर में था और हम बाहर। इस तरह के डायलॉग आपको परेशान करेंगे। आज के मॉर्डन जमाने के स्कूलों में शायद ये सब नहीं होता या बहुत कम होता है, लेकिन ये कहीं ना कहीं होता होगा। या फिर होगा। इन सभी प्रश्नों के साथ फिल्म चलती है। एक के बाद एक सीन आपको परेशान करता है। जब आप अपने दिल को छूते हैं, तो आप अपने दिमाग के तारों को हिला सकते हैं।

एक्टिंग

Guthlee Ladoo Review: संजय मिश्रा एक उत्कृष्ट अभिनेता हैं। वह सभी किरदार जीते हैं। अब वह अपने करियर की ऐसी स्थिति में हैं कि शायद उनकी एक्टिंग का परीक्षण नहीं किया जा सकता। नंबरों से उनका व्यवहार स्पष्ट नहीं होता, और फिर भी, आपको लगता है कि वे स्कूल के हेडमास्टर हैं। छोटे धनय सेठ ने गुठली का किरदार निभाया है। संजय मिश्रा जैसे अभिनेता के सामने उनकी बेहतरीन एक्टिंग बड़ी बात है। लड्डू की भूमिका में भी हीत शर्मा ने बेहतरीन काम किया है। बाकी कलाकारों ने भी अच्छी तरह से काम किया है और अपने किरदार को न्याय किया है।

कुल मिलाकर, ऐसी फिल्में दिलचस्प नहीं हैं। इनमें विलासिता नहीं है…।भड़क नहीं है..।लेकिन ऐसी फिल्म क्यों बनानी चाहिए? यह प्रश्न भी उठता है..।हम अक्सर अच्छी कहानियों की बात करते हैं लेकिन ऐसी फिल्मों की नहीं। ये भी अच्छे हैं और देखने लायक हैं। ये फिल्म दिलों में उतरेगी, भले ही बॉक्स ऑफिस पर करोड़ों रुपये न कमाए हों, लेकिन मनोरंजन प्रेमियों को देखना चाहिए।

 

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