हरियाणा वन नीति: हरियाणा सरकार ने कृषि वन, वृक्षारोपण और गार्डन को वन श्रेणी में शामिल करने के नए नियम लागू किए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वन संरक्षण अधिनियम के तहत अब अधिक भूमि सुरक्षित होगी। जानें पूरी जानकारी।
हरियाणा वन नीति: हरियाणा सरकार ने पहली बार प्रदेश में कृषि वन, वृक्षारोपण, पेड़ और गार्डन को वन की श्रेणी में शामिल करने संबंधी नियमों में बड़ा बदलाव किया है। यह कदम सुप्रीम कोर्ट के 12 दिसंबर 1996 के गोदावर्मन मामले के आदेशों के तहत उठाया गया है, जिसमें वन शब्द की परिभाषा स्पष्ट करने और सभी राज्यों को वन क्षेत्र की पहचान करने के निर्देश दिए गए थे।
हरियाणा में वन की नई परिभाषा और मापदंड
वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, अब किसी भी जमीन के टुकड़े को वन माना जाएगा यदि वह डिक्सनरी मीनिंग के अनुसार निम्न शर्तें पूरी करता हो:
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वह जमीन का टुकड़ा अलग-थलग हो और कम से कम 5 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हो।
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यदि वह सरकार द्वारा नोटिफाई किए गए वनों से सटा हो, तो न्यूनतम 2 एकड़ क्षेत्रफल का होना आवश्यक है।
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कैनोपी डेंसिटी 0.4 या उससे अधिक होनी चाहिए।
सरकार ने स्पष्ट किया है कि नोटिफाई वनों के बाहर स्थित सभी लीनियर, कॉम्पैक्ट, एग्रो फॉरेस्ट प्लांटेशन और बगानों को वन की परिभाषा में शामिल नहीं किया जाएगा।
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वन भूमि की पहचान के लिए बनाई गई दो कमेटियां
वन क्षेत्र की पहचान और सूची बनाने के लिए हरियाणा में दो स्तरों पर कमेटियां बनाई गई हैं।
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पहला: जिला स्तर पर उपायुक्त के अधीन कमेटी, जो प्रस्ताव तैयार करेगी।
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दूसरा: राज्य स्तर पर अतिरिक्त मुख्य सचिव के नेतृत्व में कमेटी, जो प्रस्तावों की समीक्षा और सिफारिशें देगी।
इन कमेटियों द्वारा बनाई गई रिपोर्ट के आधार पर वन भूमि की नोटिफिकेशन की जाएगी, जिसके बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करेगी।
हरियाणा का वर्तमान वन क्षेत्र और राष्ट्रीय लक्ष्य
वर्तमान में हरियाणा में कुल वन क्षेत्र 3,307.28 वर्ग किलोमीटर है, जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का केवल 7.48% है। इसमें 1,614.26 वर्ग किलोमीटर वनावरण और 1,693.02 वर्ग किलोमीटर वृक्षावरण शामिल है। जबकि राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार, हरियाणा सहित सभी राज्यों के लिए कम से कम 20% वन क्षेत्र होना चाहिए।
पर्यावरण संरक्षण के लिए बड़ा कदम
हरियाणा के पर्यावरण, वन एवं वन्यजीव विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव आनंद मोहन शरण ने कहा कि नई वन की परिभाषा के तहत आने वाली सभी भूमि को अब वन संरक्षण अधिनियम के तहत सुरक्षा मिलेगी। इससे वन संरक्षण को मजबूती मिलेगी और पर्यावरण संतुलन में सुधार होगा।
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