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इंदिरा एकादशी 2025: पितृ श्राद्ध और व्रत का दुर्लभ महासंयोग, जानें क्या करें इस दिन

इंदिरा एकादशी 2025 पर पितृ श्राद्ध का दुर्लभ महासंयोग है। जानिए क्या करें इस दिन, श्राद्ध और व्रत साथ में कैसे करें, और धर्मशास्त्र क्या कहता है।

इंदिरा एकादशी 2025 इस बार बेहद खास है क्योंकि यह पितृ पक्ष के श्राद्ध के साथ ही एक ही दिन पड़ रही है। पंचांग के अनुसार, 17 सितंबर 2025 को इंदिरा एकादशी का व्रत और पितृ पक्ष का श्राद्ध दोनों का संयोग बन रहा है, जो बहुत ही दुर्लभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस अनोखे दिन को लेकर कई लोगों के मन में भ्रम रहता है कि क्या पितृ श्राद्ध करें या एकादशी व्रत? इस लेख में हम इस संदेह को दूर करेंगे और बताएंगे कि धर्मशास्त्र इस विषय में क्या कहते हैं।

इंदिरा एकादशी का महत्व

इंदिरा एकादशी 2025 व्रत का संबंध मुख्य रूप से पितरों की आत्मा की शांति और मुक्ति से है। यह व्रत पितृ पक्ष के दौरान आता है, इसलिए इसे विशेष रूप से पितरों को समर्पित माना जाता है। पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि इस व्रत से न केवल व्रत रखने वाले को मोक्ष मिलता है, बल्कि उनके पूर्वजों को भी नरक से मुक्ति मिलती है। इस व्रत में भगवान विष्णु और भगवान शालिग्राम की पूजा की जाती है। माना जाता है कि यह व्रत प्रेत योनि में गए पितरों को भी स्वर्ग में स्थान दिलाता है।

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पितृ श्राद्ध का महत्व

पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान पितरों को तर्पण, पिंडदान और भोजन कराया जाता है ताकि उनकी आत्मा को शांति मिल सके। पुराणों में वर्णित है कि पितृ पक्ष में पूर्वज सूक्ष्म रूप में अपने वंशजों के बीच आते हैं और श्राद्ध के जरिए अपनी आत्मा की शांति पाते हैं। जो लोग श्राद्ध नहीं करते, उन्हें पितृ दोष माना जाता है, जिससे जीवन में बाधाएं आती हैं। इसलिए श्राद्ध करना हर संतान का धर्म है।

क्या कहता है धर्मशास्त्र?

धर्मग्रंथों में स्पष्ट कहा गया है कि कर्तव्य का पालन पूजा या व्रत से पहले आता है। श्राद्ध कर्म संतान का परम कर्तव्य है जो पितरों के प्रति सम्मान दर्शाता है। एकादशी व्रत के दौरान श्राद्ध करने से व्रत भंग नहीं होता, बल्कि इसका महत्व और बढ़ जाता है। पितरों को भोजन देना व्रत के नियमों का उल्लंघन नहीं माना जाता। इसलिए, एक दिन में दोनों क्रियाएं पितृ श्राद्ध और एकादशी व्रत साथ में की जा सकती हैं।

इंदिरा एकादशी 2025 पर क्या करें?

इस दिन सुबह पितृ श्राद्ध के सभी विधि-विधान जैसे तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोज करें। इसके बाद दिन भर इंदिरा एकादशी 2025 का व्रत रखें। इस तरह आप अपने पूर्वजों को सम्मान देने के साथ-साथ स्वयं के लिए भी पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं।

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