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कांवड़ यात्रा 2025: आज से कांवड़ यात्रा शुरू, जानें इसकी पवित्रता और महत्व

कांवड़ यात्रा 2025: सावन में कांवड़ यात्रा का शुभ आरंभ हो चुका है। जानें इस पवित्र यात्रा का धार्मिक महत्व, इतिहास, और कब तक चलेगी यह यात्रा। शिव भक्तों के लिए खास जानकारी।

कांवड़ यात्रा 2025: सावन माह के आगमन के साथ ही देश भर में कांवड़ यात्रा का शुभारंभ हो चुका है। 11 जुलाई से शुरू हुई इस पावन यात्रा में शिव भक्त अपने कंधों पर गंगाजल की कांवड़ें लेकर दूर-दराज के शिवालयों तक पैदल जलाभिषेक के लिए जाते हैं। यह परंपरा सावन माह को और भी अधिक पुण्यकारी बनाती है। आइए जानते हैं कांवड़ यात्रा का धार्मिक महत्व और इसकी पौराणिक कहानियाँ।

कब से कब तक चलेगी कांवड़ यात्रा 2025?

सावन के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि 11 जुलाई को कांवड़ यात्रा 2025 आरंभ हो गई है, जो 23 जुलाई तक चलेगी। इसके बाद सावन माह का समापन 9 अगस्त को होगा। इस दौरान लाखों भक्त अपने श्रद्धा भरे मन से कांवड़ लेकर भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं।

पहला कांवड़िया कौन था?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय निकले खतरनाक विष ‘हलाहल’ को भगवान शिव ने अपने कंठ में ग्रहण कर संसार को बचाया था। विष के प्रभाव से उनके गले का रंग नीला पड़ गया, इसलिए उन्हें नीलकंठ कहा जाता है। विष की जलन से छुटकारा पाने के लिए देवताओं ने उन्हें पवित्र नदियों के जल से अभिषेक करना शुरू किया। इसी से जलाभिषेक की परंपरा शुरू हुई।

ऐसा भी माना जाता है कि भगवान शिव के परम भक्त रावण पहले कांवड़िया थे, जिन्होंने सावन माह में गंगाजल लाकर शिव का अभिषेक किया था। तब से यह कांवड़ यात्रा की परंपरा आज तक चली आ रही है।

कांवड़ यात्रा का महत्व

कांवड़ यात्रा को भगवान शिव की विशेष कृपा पाने का माध्यम माना जाता है। भक्तों का विश्वास है कि गंगाजल से भगवान शिव का जलाभिषेक करने से उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और वह रोग, शोक, दरिद्रता और भय से मुक्त हो जाते हैं। इसके साथ ही यह यात्रा मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी मानी जाती है।

कांवड़ लेने वाले भक्तों को भगवान शिव का परम प्रिय माना जाता है और यह यात्रा उनकी भक्ति का प्रतीक है। सावन माह में इस पवित्र कार्य के माध्यम से शिव भक्त अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं और आध्यात्मिक शांति पाते हैं।

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