जाने कैसे NATO के ज़रिए , अमेरिका को घेरने की फ़िराक़ में है, रुस !
किसी एक मित्र देश पर हमले को बाकी सभी देशों पर हमला मानने वाला NATO दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य गठबंधन आज फिर से चर्चा में है। अमेरिका के दबदबे वाला NATO , आज रूस-यूक्रेन विवाद के बीच की सबसे बड़ी वजह बनकर उभर रहा है। किसी जमाने में सोवियत संघ का हिस्सा रहा यूक्रेन, आज NATO देशों से जुड़ना चाहता है, हालाँकि रूस ने अपनी सुरक्षा के लिहाज से इसे खतरा मानते हुए, यूक्रेन के ऐसा ना करने के लिए उसके खिलाफ युद्ध छेड़ चुका है।
NATO की नीव दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ को रोकने के लिए और अमेरिकी – यूरोपीय देशों के एक संयुक्त सैन्य गठबंधन के रूप में बनाया था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवीयत संघ , दो सबसे बड़ी ताकते बनकर उभरे, जो विश्व पर अपना रुतबा कायम करना चाहते थे । जिस कारण अमेरिका और सोवियत संघ के संबंध काफ़ी बिगड़ने लगे और उनके बीच शीत युद्ध (कोल्ड वॉर) की शुरुआत हुई।सोवियत संघ की सरकार द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से कमजोर पड़ चुकी थी जो की यूरोपीय देशों पर अपना प्रभुत्व स्थापित भी करना चाहती थी।
USSR की योजना तुर्की और ग्रीस पर अपना दबदबा क़ायम करने की थी। ग्रीस और तुर्की पर कंट्रोल से सोवियत संघ काला सागर के माध्यम से होने वाले दुनिया भर के व्यापार को अपने नियंत्रित में करना चाहता था।सोवियत संघ की इस विस्तारवादी नीतियों के चलते पश्चिमी देशों और अमेरिका से उसके संबंध खराब हो गए।यूरोप में सोवियत संघ के प्रसार को रोकने के लिए आख़िरकार यूरोपीय देशों और अमेरिका ने मिलकर NATO की स्थापना की ।वही NATO से निपटने के लिए सोवियत संघ ने वर्ष 1955 5 मई को वारसा ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन या वारसा पैक्ट यानी WTO बनाया था।
वारसा पैक्ट के तहत सोवियत संघ समेत 8 देशों-(अल्बानिया, बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, पूर्वी जर्मनी, हंगरी, पोलैंड, रोमानिया ) आते है ।1 जुलाई 1991 को सोवियत संघ के विघटन के बाद वारसा पैक्ट खत्म हो गया था।