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Putrada Ekadashi 2025 Date: जनवरी में पुत्रदा एकादशी व्रत, सही दिन, विधि और महत्व जानें

Putrada Ekadashi 2025 Date: पारिवारिक खुशियों और संतान प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाता है। साल 2025 में पुत्रदा एकादशी कब है, आइए जानते हैं।

Putrada Ekadashi 2025 Date: हिंदू धर्म में पुत्रदा एकादशी एक बहुत महत्वपूर्ण व्रत है। संतान प्राप्ति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत बहुत अच्छा माना जाता है। कई दंपतियों को पौष महीने में आने वाला यह व्रत सुख-समृद्धि देगा। साल 2025 की पहली एकादशी पुत्रदा एकादशी ही है। ऐसे में इस दिन व्रत रखने से आप पूरे साल भर शुभ फल भी प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे में आइए जान लेते हैं कि, जनवरी के महीने में पुत्रदा एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा। व्रत की विधि क्या और हिंदू धर्म में इसका क्या महत्व है।

पुत्रदा एकादशी तिथि 2025

जनवरी के दूसरे सप्ताह में 2025 की पहली एकादशी का व्रत होगा। एकादशी तिथि 9 जनवरी से 10 जनवरी तक रहेगी।

एकादशी तिथि 9 जनवरी 2025 को 12 बजे 23 मिनट से शुरू होगी।

एकादशी तिथि समाप्ति- 10 जनवरी सुबह 10 बजकर 20 मिनट तक

उदयातिथि की मान्यता के अनुसार, एकादशी का व्रत 10 जनवरी 2025 को रखा जाएगा।

पुत्रदा एकादशी व्रत की विधि

एकादशी तिथि के व्रत रखने वाले लोगों को दशमी तिथि से ही शुद्ध जीवन जीना चाहिए। इसके बाद आपको एकादशी तिथि के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें। विष्णु को गंगाजल, रोली, चावल, पुष्प और तुलसी का एक दल अर्पित करें। इसके बाद अगरबत्ती और दीपक जलाएं। तत्पश्चात भगवान को पंचामृत, फल और मिष्ठान्न अर्पित करें। पूजा करने वालों को पुत्रदा एकादशी की कहानी सुनना या पढ़ना अनिवार्य है। कथा सुनने से पूरा व्रत का लाभ मिलता है। इस दिन व्रत रखने वालों को पूरे दिन भगवान विष्णु का नाम जपना चाहिए। आप “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप कर सकते हैं अगर आप चाहें। द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करना चाहिए। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन खिलाकर दान-दक्षिणा देकर खुद भोजन लें।

पुत्रदा एकादशी का महत्व

पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही इस दिन व्रत रखने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत पारिवारिक सुख-शांति और संतान के उज्ज्वल भविष्य के लिए भी अत्यंत शुभ माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महिष्मति नगरी के राजा सुकेतुमान और उनकी रानी शैव्या ने इस व्रत को रखा था, जिससे उन्हें योग्य संतान की प्राप्ति हुई थी।

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