Shani Pradosh Vrat: शनि प्रदोष व्रत पर साढ़ेसाती वाले ये उपाय करें

Shani Pradosh Vrat: हिंदू धर्म में भगवान भोलेनाथ की पूजा का दिन प्रदोष व्रत माना जाता है। प्रदोष व्रत प्रत्येक महीने की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। शनिवार के दिन होने के कारण इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाएगा।
Shani Pradosh Vrat: हिंदू धर्म में भगवान भोलेनाथ की पूजा का दिन प्रदोष व्रत माना जाता है। प्रदोष व्रत प्रत्येक महीने की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। शनिवार के दिन होने के कारण इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाएगा। 24 मई, शनिवार को ज्येष्ठ मास का कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनि प्रदोष व्रत के फल से शनि की साढ़ेसाती का बुरा प्रभाव भी कम होता है। इस दिन शनिदेव को भगवान भोलेनाथ के साथ पूजा करना बहुत महत्वपूर्ण है। माना जाता है कि शनि प्रदोष करने से जातक की हर मनोकामना पूरी होती है। इस व्रत में प्रदोष काल में पूजा करना बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। वर्तमान में मेष, कुंभ और मीन राशि में शनि की साढ़ेसाती चल रही है। शनि की साढ़ेसाती लगने पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस शुभ दिन, शनि की साढ़ेसाती के बुरे प्रभावों से बचने के लिए गंगा जल से भगवान शंकर का अभिषेक करें और श्री रुद्राष्टकम का पाठ करें। श्री रुद्राष्टकम का पाठ करने से भगवान शंकर की बहुत कृपा मिलती है। आप रोजाना भी श्री रुद्राष्टकम का पाठ कर सकते हैं।
श्री रुद्राष्टकम
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥
प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥
रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।
॥ इति श्रीगोस्वामीतुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥