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सरजमीन फिल्म रिव्यू: ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ हुई देशभक्ति पर आधारित थ्रिलर, जानें फिल्म की खासियत और कमियां

सरजमीन फिल्म रिव्यू: जियोसिनेमा पर रिलीज़ हुई देशभक्ति थ्रिलर, जानिए पृथ्वीराज सुकुमारन, काजोल और इब्राहिम अली खान की एक्टिंग और फिल्म की खासियतें और कमियां।

सरजमीन फिल्म रिव्यू: ओटीटी प्लेटफॉर्म जियोसिनेमा पर 25 जुलाई को रिलीज़ हुई फिल्म ‘सरजमीन ’ देशभक्ति के जज़्बे और पारिवारिक संघर्ष को एक साथ प्रस्तुत करती है। (सरजमीन फिल्म रिव्यू) काजोल, पृथ्वीराज सुकुमारन और इब्राहिम अली खान जैसे कलाकारों से सजी यह फिल्म अपने थीम के चलते दर्शकों की उम्मीदों पर खरी उतरने की कोशिश करती है। आइए जानते हैं, क्या यह फिल्म आपके वीकेंड की प्लेलिस्ट में शामिल होनी चाहिए।

कहानी का सार (बिना स्पॉइलर)

फिल्म की कहानी कश्मीर में तैनात कर्नल विजय मेनन (पृथ्वीराज सुकुमारन) और उसके बेटे हरमन (इब्राहिम अली खान) के बीच जटिल रिश्ते पर आधारित है। कर्नल मेनन अपने बेटे को कायर समझते हैं और उसे अपनाने से मना कर देते हैं। वहीं, हरमन अपने पिता के प्यार के लिए तरसता है, लेकिन उपेक्षा और गलतफहमियों के बीच वह एक ऐसा रास्ता चुन लेता है जो उसकी सरजमीन के खिलाफ जाता है। फिल्म की कथा देशभक्ति और पारिवारिक जज़्बातों के बीच टकराव को दर्शाती है।

अभिनय पर एक नजर

पृथ्वीराज सुकुमारन ने कर्नल मेनन के किरदार को काफी प्रभावशाली ढंग से निभाया है। उनके भाव और हावभाव गुस्से, दर्द और मोहब्बत के जज़्बात को बखूबी दर्शाते हैं। काजोल ने सीमित स्क्रीन टाइम के बावजूद अपने किरदार को ठीक-ठाक निभाया है, हालांकि उनके रोल में कुछ नया नज़र नहीं आता। इब्राहिम अली खान ने अपने चॉकलेट बॉय इमेज से हटकर एक गंभीर और जटिल किरदार निभाने की कोशिश की है, जो काबिल-ए-तारीफ है, लेकिन डायलॉग डिलीवरी में उन्हें सुधार की जरूरत है।

फिल्म की खास बातें- सरजमीन फिल्म रिव्यू

कश्मीर की सुरम्य वादियों को कैमरे में खूबसूरती से कैद किया गया है, जो फिल्म को विजुअली आकर्षक बनाता है। देशभक्ति की भावना के साथ-साथ पारिवारिक रिश्तों की गहराई भी महसूस होती है। कुछ डायलॉग्स जैसे “सरजमीन की सलामती से बढ़कर मेरे लिए कुछ नहीं, चाहे फिर मेरा बेटा ही क्यों न हो।” फिल्म की यादगार बातें बनती हैं।

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कमियां जो नजर आईं

फिल्म की कहानी कुछ पुरानी फिल्मों जैसे ‘मिशन कश्मीर’ और ‘फिजा’ की याद दिलाती है और नई नहीं लगती। कई सीन की तार्किकता कमजोर है और कुछ दृश्य असलियत से दूर-दूर तक मेल नहीं खाते। काजोल, पृथ्वीराज और इब्राहिम के बीच रिश्तों का रासायनिक बंधन उतना प्रभावशाली नहीं लगता। इसके अलावा कुछ एक्शन सीन्स, जैसे डैम ब्लास्ट वाला दृश्य, वीएफएक्स की वजह से बनावटी लगते हैं।

देखें या नहीं? (सरजमीन फिल्म रिव्यू)

अगर आप इब्राहिम अली खान को एक नए और अलग किरदार में देखना चाहते हैं तो ‘सरजमीन’ एक बार देखने लायक हो सकती है। लेकिन अगर आप देशभक्ति या थ्रिलर की उम्मीद से कुछ नया और दमदार देखने के मूड में हैं तो यह फिल्म आपको निराश कर सकती है।

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