कजरी तीज 2025: क्या है इसका धार्मिक महत्व, कब है व्रत और क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त?
कजरी तीज 2025 की तारीख, व्रत का महत्व और शुभ मुहूर्त जानिए। जानें कब रखें व्रत, कैसे करें पूजा, और कजरी तीज का धार्मिक महत्व।
कजरी तीज 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज मनाई जाती है। यह पर्व सुहागिन महिलाओं और कुंवारी कन्याओं के लिए विशेष महत्व रखता है। मान्यता है कि मां पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इस व्रत की शुरुआत की थी। इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और संतान सुख, वैवाहिक सौभाग्य तथा मनचाहा वर पाने की कामना करती हैं।
कजरी तीज का महत्व
कजरी तीज न केवल एक व्रत है, बल्कि यह महिलाओं के आत्मिक और पारिवारिक सुख-समृद्धि से जुड़ा एक पावन पर्व भी है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत की शुरुआत स्वयं मां पार्वती ने की थी। उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप और कजरी तीज का व्रत किया था। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया।
आज भी महिलाएं इसी श्रद्धा के साथ व्रत रखती हैं और शिव-पार्वती से अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। वहीं कुंवारी कन्याएं अच्छे जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए यह उपवास करती हैं।
कब है कजरी तीज 2025 में?
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत: 11 अगस्त 2025 को सुबह से
तृतीया तिथि समाप्त: 12 अगस्त 2025 को सुबह 8:40 बजे तक
धार्मिक मान्यता के अनुसार कजरी तीज 12 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी, क्योंकि तृतीया तिथि उस दिन उदय काल तक रहेगी, जो पंचांग नियमों के अनुसार त्योहार मनाने की प्रमुख शर्त होती है।
कजरी तीज 2025: पूजा के शुभ मुहूर्त
कजरी तीज पर पूजा और व्रत के लिए कई शुभ मुहूर्त उपलब्ध होंगे:
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ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:23 से 05:06 तक
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विजय मुहूर्त: दोपहर 02:38 से 03:31 तक
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गोधूलि मुहूर्त: शाम 07:03 से 07:25 तक
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निशीथ काल: रात 12:05 से 12:48 तक
इन मुहूर्तों में व्रत, पूजा और चंद्रमा को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है। विशेष रूप से गोधूलि वेला और निशीथ काल को कजरी तीज की पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना गया है।
कजरी तीज व्रत विधि और पूजन सामग्री
इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और व्रत का संकल्प लेती हैं। मां पार्वती और भगवान शिव की मूर्ति या चित्र की पूजा की जाती है। इस दौरान रोली, चावल, दूध, फल, मिठाई और हरे वस्त्र का उपयोग किया जाता है। कुछ स्थानों पर महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और कथा सुनती हैं।
व्रतधारियों को दिनभर निराहार रहना होता है और रात को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है।
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