पुत्रदा एकादशी 2025 कब है पुत्रदा एकादशी? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और धार्मिक महत्व
पुत्रदा एकादशी 2025 इस बार 5 अगस्त को मनाई जाएगी। जानें इस व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, धार्मिक महत्व और इससे प्राप्त होने वाले विशेष लाभ।
पुत्रदा एकादशी 2025: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत को अत्यंत पवित्र और पुण्यदायक माना गया है। वर्ष में कुल 24 या 25 एकादशियां आती हैं, लेकिन उनमें से पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व होता है। विशेष रूप से वे लोग जो संतान सुख की प्राप्ति की कामना करते हैं, उनके लिए यह एकादशी बेहद फलदायी मानी जाती है। इस व्रत का पालन करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में संतान संबंधित कष्टों का निवारण होता है।
वर्ष 2025 में सावन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे पुत्रदा एकादशी कहा जाता है, पुत्रदा एकादशी 2025, 5 अगस्त को मनाई जाएगी। इस तिथि का प्रारंभ 4 अगस्त को सुबह 11 बजकर 41 मिनट पर होगा और समापन 5 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 12 मिनट पर होगा। उदया तिथि को महत्व दिए जाने के कारण व्रत 5 अगस्त को ही रखा जाएगा। पूजा के लिए ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 4:20 से 5:02 बजे तक रहेगा, जबकि अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:00 बजे से 12:54 बजे तक होगा। सायंकाल की पूजा 7:09 बजे से 7:30 बजे तक की जा सकती है। इन शुभ मुहूर्तों में भगवान विष्णु की पूजा करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
संतान सुख की कामना के लिए विशेष मानी जाती है- पुत्रदा एकादशी 2025
पुत्रदा एकादशी का संबंध सिर्फ संतान की प्राप्ति से नहीं है, बल्कि यह व्रत संतान की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए भी किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और जातक को सभी दुखों से मुक्ति मिलती है। इस दिन व्रती को सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए और भगवान विष्णु का विधिवत पूजन करना चाहिए। पीले वस्त्र, पीले फूल, तुलसी पत्र, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन करना शुभ माना गया है। रात्रि में भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करना भी अत्यंत पुण्यकारी माना गया है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से पापों का नाश होता है और पूर्व जन्मों के दोष भी समाप्त होते हैं। यह व्रत जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और मानसिक शांति प्रदान करता है। धर्मग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि इस एकादशी को करने से जातक को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है और मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है। इसीलिए श्रद्धालु हर वर्ष सावन मास की शुक्ल पक्ष एकादशी पर इस व्रत को बड़े भक्तिभाव से करते हैं और अपने परिवार की सुख-शांति की कामना करते हैं।
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