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Jivitputrika Vrat Katha 2023: यदि आप अपने पुत्र को खो देना नहीं चाहते तो आज सुनें जितिया का निर्जला व्रत।

Jivitputrika Vrat Katha

Jivitputrika Vrat Katha: जितिया, जिउतिया और जीवितपुत्रिका व्रत जितिया पर्व के नाम हैं। पंचांग के अनुसार, जितिया का व्रत हर साल अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। इस व्रत को माताएं अपने संतान को स्वस्थ रखने के लिए रखती हैं। नहाय खाय से जितिया व्रत की शुरुआत होती है।

आज, शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2023 को माताओं ने जितिया का निर्जला व्रत रखा है। कल, 7 अक्टूबर 2023 को सुबह स्नान करके व्रत का पारण किया जाएगा। लेकिन आप इस व्रत की शुरुआत कैसे हुई? तो चलिए जितिया व्रत से जुड़ी कहानियों को जानते हैं।

मान्यता है कि इस कथा को सुने, पढ़े या पढ़े बिना जितिया का व्रत पूरा नहीं होता। इसलिए आप भी पूजा में इस कथा को पढ़ना चाहिए। ध्यान दें कि जितिया व्रत से जुड़ी एक नहीं बल्कि कई कहानियां प्रचलित हैं, जिनमें से एक इस तरह है-

1.    जितिया व्रत की कथा (महाभारत युद्ध)

Jivitputrika Vrat Katha: पौराणिक कथाओं में द्रोणाचार्य की मृत्यु का बदला लेने के लिए उनके पुत्र अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र चला दिया। इस ब्रह्मास्त्र से अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा की मृत्यु हो गई। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माया से उत्तरा के गर्भ में पुनः जन्म दिया। माना जाता है कि बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया था। इसके बाद से ही माताएं जितिया का व्रत करती हैं ताकि उनका बच्चा लंबे समय जीवित रहे और उनका जीवन सुरक्षित रहे।

2.    जितिया व्रत कथा (चील और सियारिन)

यह कथा जितिया व्रत से संबंधित सबसे लोकप्रिय कहानियों में से एक है। यह कहानी कहती है कि एक पेड़ पर चील और सियारिन रहते थे। दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे। चील और सियारिन दोनों एक-दूसरे को खाना जरूर देते थे। गांव की महिलाएं एक दिन जितिया व्रत की तैयारी कर रही थीं। चील भी महिलाओं को देखकर इस व्रत को करना चाहता था।

Jivitputrika Vrat Katha: उसने जाकर सारी बात सियारिन को बताई। चील और सियारिन ने फिर जितिया व्रत रखने का फैसला किया। दोनों ने अगले दिन व्रत रखा। लेकिन सियारिन को दोनों भूख और प्यास लगने लगी, जिससे वह थककर इधर-उधर घूमने लगी। गांव में किसी की मृत्यु जिस दिन जितिया का व्रत था।

 

 

सियारिन को देखकर उसके मुंह में पानी आ गया। सियारिन ने भूख को शांत करने के लिए अधजले शव को खाया. वह भूल गई कि उसने तो जितिया का व्रत रखा था। लेकिन चील ने पूरी श्रद्धा, निष्ठा और दिल से जितिया का व्रत किया और फिर पारण किया।

3. जितिया व्रत कथा (भगवान जीऊतवाहन की कथा)

Jivitputrika Vrat Katha:  चील और सियारिन अगले जन्म में एक राजा के घर में सगी बहन बनीं। चील बड़ी बहन बन गई, जबकि सियारिन छोटी बहन बन गई। दोनों ने विवाह कर लिया। चील ने सात बच्चों को जन्म दिया, लेकिन सियारिन के बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे। इस तरह, सियारिन को अपनी बहन से ईर्ष्या होने लगी और वह अपने आप से जलने लगी।

उसने चील के सभी संतानों को मार डाला और सातों बेटों के सिर काटकर चील के घर भेजा। यह देखकर भगवान जीऊतवाहन ने सातों संतानों के सिर मिट्टी से बनाए, प्रत्येक के सिर को धड़ से जोड़कर अमृत छिड़कर उन्हें जीवित कर दिया. सियारिन ने चील को जो सिर कटे थे, वे जीऊतवाहन की कृपा से फल बन गए।

Jivitputrika Vrat Katha:  सियारिन व्याकुल हो गई और बहन के रोने की आवाज और कोई बुरा समाचार नहीं सुनकर बहन के पास गई। सियारिन ने खुद चील को सारी कहानी बता दी। तब चील ने उसे पिछले जन्म की पूरी कहानी बताई. सुनकर सियारिन ने अपनी गलती का पश्चाताप किया।

 

 

Jivitputrika Vrat Katha: चील फिर सियारिन को उसी पेड़ पर ले गई, और भगवान जीऊतवाहन की कृपा से उसे सब कुछ याद आ गया। इससे इतनी दुखी हो गई कि सियारिन उसी पेड़ के पास मर गई। सियारिन का अंतिम संस्कार उसी पेड़ के पास हुआ।

 

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