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भूखे को भोजन कराकर कभी घमंड नहीं करना चाहिए, भोजन का ना करें अपमान –

कहा जाता है कि किसी भूखे को भोजन कराना बहुत ही पुण्य का काम है. लेकिन उसके साथ ही भोजन का सम्मान करना भी उतना ही पुण्य का काम है. हम आपको आज इससे ही जुड़ा एक किस्सा बताने जा रहे हैं.

यह किस्सा सुनाने का मुख्य उद्देश्य आपको यह बताना है कि अगर किसी को खाना खिलाने का मौका मिले, तो उसे प्रेम से खिलाना चाहिए. लेकिन दूसरों को खाना खिलाने के बाद घमंड नहीं करना चाहिए. और अन्न का एक दाना भी फेंकना नहीं चाहिए. किसी के भी अच्छे – बुरे का निर्णय भगवान पर छोड़ देना चाहिए. हमें तो बिना किसी स्वार्थ के सभी की सेवा करनी चाहिए.

यह कहानी है संत वीर दास जी की जो पैदल आने जाने वाले यात्रियों को भोजन और पानी पिलाते थे. भूखे लोगों का पेट भर कर उनकी आत्मा तृप्त हो जाती थी. वह प्रतिदिन यही काम करते थे. लेकिन एक दिन इत्तेफाक से ऐसा हुआ कि सुबह से रात तक कोई भी राहगीर नहीं निकला. तो संत वीर दास ने विचार किया कि भूखे राहगीरों को भोजन कराएं बिना मैं खुद कैसे भोजन कर सकता हूं. तब उन्हें सामने से एक बूढ़ा व्यक्ति दिखाई दिया, जिसे देख वीर दास जी ने उससे कहा कि आप भोजन कर लें. लेकिन बूढ़ा व्यक्ति बोला मैं भोजन नहीं करना चाहता. तो वीर दास जी ने कहा इतनी दूर आपको जाना है खाली पेट कैसे जाएंगे कुछ तो खा लीजिए. यह बात सुनकर बूढ़ा व्यक्ति खाने के लिए बैठ गया. वीर दास ने उसे खाना दिया तो उस व्यक्ति ने खाना शुरू ही किया था, कि वीर दास जी उस बूढ़े व्यक्ति से बोले कि खाने से पहले आप भगवान को याद करके उनको धन्यवाद नहीं देते है ?

इस बात पर बूढ़े व्यक्ति ने जवाब दिया कि आपने हमें भोजन के लिए बुलाया और हमने भोजन किया, तो बीच में भगवान कहां से आ गए. यह बात सुनकर वीर दास जी को क्रोध आ गया. उन्होंने तुरंत उस बूढ़े से खाने की थाली वापस ले ली. और कहा अब आप भूखे ही जाइए.
यह सुनकर बूढ़ा व्यक्ति वहां से चला गया और वीर दास जी बिना कुछ खाए सो गए. उसी रात संत जी के सपने में स्वयं भगवान आए और बोले वीर दास यह तुमने क्या किया ? आज तुमने मेरा ही अपमान कर दिया….. वीर दास जी बोले कि व्यक्ति आपका अपमान कर रहा था. इसलिए मैंने उससे भोजन की थाली वापस ले ली. भगवान ने वीर दास जी से कहा, कि उस व्यक्ति की उम्र 90 साल है और वह मुझे 90 सालों से ही कोसता रहा है. फिर भी मैं रोज उसके खाने की व्यवस्था कर देता हूं. फिर तुम्हें उससे भोजन छीनने का अधिकार किसने दिया ? संत वीर दास जी समझ गए कि भगवान क्या समझाना चाहते हैं.

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