अहोई अष्टमी 2025: 13 या 14 अक्टूबर, जानें व्रत की सही तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और चन्द्रोदय का समय
अहोई अष्टमी 2025 कब है? जानें 13 या 14 अक्टूबर को अहोई अष्टमी व्रत की सही तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और चन्द्र उदय का समय। माता अहोई की पूजा से मिले संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि।
अहोई अष्टमी 2025: अहोई अष्टमी का व्रत हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को संतानवती महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं। हालांकि, इस वर्ष 2025 में अहोई अष्टमी की तिथि को लेकर कन्फ्यूजन बनी हुई है। 13 अक्टूबर या 14 अक्टूबर, किस दिन अहोई अष्टमी 2025 मनाई जाएगी? इस लेख में हम आपको इस व्रत की सही तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और चन्द्रोदय के समय के बारे में विस्तार से बताएंगे।
अहोई अष्टमी का महत्व
अहोई अष्टमी का व्रत खासकर उन माताओं द्वारा किया जाता है जो अपने पुत्र या पुत्रियों के स्वास्थ्य, खुशहाली और उज्जवल भविष्य की कामना करती हैं। उत्तर भारत के कई राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और मध्यप्रदेश में यह व्रत बड़े श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस व्रत को अहोई आठवें भी कहा जाता है जो नवरात्रि के बाद चौथ के चार दिन और दिवाली से आठ दिन पहले पड़ता है।
अहोई अष्टमी 2025 की तिथि और समय
द्रिक पंचांग के अनुसार, अहोई अष्टमी 2025, 13 अक्टूबर की दोपहर 12:24 बजे से शुरू होकर 14 अक्टूबर की सुबह 11:09 बजे तक रहेगी। इसलिए इस वर्ष अहोई अष्टमी 13 अक्टूबर, सोमवार को मनाई जाएगी।
अहोई अष्टमी 2025 पूजा का शुभ मुहूर्त
सूर्योदय: सुबह 06:36 बजे
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:57 से 05:46 बजे तक
अभिजित मुहूर्त: दोपहर 12:02 से 12:49 बजे तक
संध्या मुहूर्त: शाम 06:16 से 07:30 बजे तक
तारों को देखने का समय: शाम 06:38 बजे
चन्द्रोदय: रात 11:54 बजे
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अहोई अष्टमी की पूजा विधि
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करें और लाल, गुलाबी या पीले रंग के वस्त्र धारण करें।
घर के मंदिर की साफ-सफाई करें और पूजा स्थल को स्वच्छ करें।
हाथ में जल या अक्षत लेकर निर्जला व्रत का संकल्प लें।
अहोई माता को भोग लगाने के लिए पूड़ी, हलवा, चने और मीठे गुलगुले बनाएं।
मंदिर में उत्तर या पूर्व दिशा की ओर अहोई माता की तस्वीर या चित्र स्थापित करें।
माता के माथे पर रोली से तिलक लगाएं।
घर के सभी सदस्यों को तिलक लगाएं और कच्चा सूत्र बांधें।
देसी घी का दीपक जलाएं और अहोई माता को भोग अर्पित करें।
व्रत की कथा सुनें या पढ़ें।
रात को तारों या चंद्र देव को अर्घ्य अर्पित करें और पानी पीकर व्रत का पारण करें।
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