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पंजाब को मिलेगा चिनाब नदी का जल? SYL विवाद पर CM मान का नया प्लान

CM भगवंत मान ने SYL विवाद पर केंद्र से सिंधु जल के बेहतर उपयोग की मांग की। चिनाब नदी का पानी पंजाब के भूजल संकट का हल बन सकता है।

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने केंद्र सरकार से अपील की है कि वह सतलुज-यमुना लिंक एसवाईएल (SYL विवाद) नहर के विवाद को स्थगित कर, भारत को मिले सिंधु जल समझौते के तहत चिनाब नदी के पानी के इस्तेमाल को प्राथमिकता दे। उन्होंने कहा कि यह कदम पंजाब के भूजल संकट को हल करने में मददगार साबित हो सकता है और भविष्य की पीढ़ियों के लिए जल सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है।

सिंधु जल समझौता निलंबित, अब भारत को मिला बड़ा अवसर- SYL विवाद

मुख्यमंत्री ने केंद्र की ओर से बुलाई गई बैठक में भाग लेते हुए कहा कि पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि के निलंबन के बाद भारत को अब चिनाब नदी के जल का बेहतर उपयोग करने का मौका मिला है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस जल को रंजीत सागर, भाखड़ा, और पोंग बांध जैसे जलाशयों में डायवर्ट किया जाए और इसके लिए नई नहरें और बुनियादी ढांचा पंजाब में विकसित किया जाए। “यह अतिरिक्त जल पहले पंजाब की जरूरतों को पूरा कर सकता है और फिर हरियाणा और राजस्थान को वितरित किया जा सकता है,” – भगवंत मान।

भूजल संकट के समाधान में मददगार

मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि चिनाब नदी के जल का उपयोग पंजाब की सतही सिंचाई प्रणाली को पुनर्जीवित करेगा और राज्य की भूजल पर निर्भरता घटाएगा। उन्होंने कहा कि राज्य में 75% से अधिक ब्लॉक अति-दोहित (overexploited) घोषित हो चुके हैं और यदि ताजे जल संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं किया गया, तो पंजाब का कृषि भविष्य खतरे में पड़ सकता है।

SYL विवाद पर मुख्यमंत्री की सख्त टिप्पणी

भगवंत मान ने दोहराया कि एसवाईएल नहर (SYL विवाद) न केवल एक संवेदनशील भावनात्मक मुद्दा है बल्कि इससे कानून-व्यवस्था की स्थिति भी बिगड़ सकती है। उन्होंने कहा कि “एसवाईएल को अब समाप्त किया जाना चाहिए और उसकी जगह शारदा-यमुना लिंक परियोजना को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।”

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उन्होंने यह भी प्रस्ताव दिया कि रोहतांग सुरंग के ज़रिए चिनाब नदी का जल व्यास नदी में मोड़ा जाए और इस अतिरिक्त जल का इस्तेमाल हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान की जरूरतों को पूरा करने में किया जाए।

यमुना जल समझौते में पंजाब की हिस्सेदारी की मांग

मुख्यमंत्री ने 1994 के यमुना जल समझौता ज्ञापन की 2025 में होने वाली समीक्षा के संदर्भ में यह भी मांग की कि पंजाब को भी इस जल समझौते में शामिल किया जाए और राज्य को 60% अतिरिक्त यमुना जल का हिस्सा दिया जाए।

हरियाणा के वैकल्पिक जल स्रोतों पर सवाल

भगवंत मान ने कहा कि हरियाणा को पहले से ही 2.703 मिलियन एकड़ फीट पानी विभिन्न स्थानीय स्रोतों- जैसे घग्गर, सरस्वती, साहिबी नदियों और अन्य नालों- से प्राप्त हो रहा है, जिसे अभी तक जल आवंटन के दौरान ध्यान में नहीं लिया गया है।

पंजाब को जल बंटवारे में प्राथमिकता क्यों?

मुख्यमंत्री ने बताया कि पंजाब को अब तक तीन नदियों के कुल 34.34 एमएएफ जल में से मात्र 14.22 एमएएफ जल आवंटित किया गया है। शेष 60% जल हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान को दिया गया, जबकि ये नदियाँ उन राज्यों से होकर गुजरती ही नहीं हैं।

उन्होंने कहा कि पंजाब का जल योगदान कृषि में सबसे अधिक है, फिर भी राज्य को उचित जल आवंटन नहीं मिल रहा। “पंजाब ने 2024 में देश को 47% गेहूं और 24% चावल केंद्र पूल में दिया है, इसके बावजूद हमें जल संकट झेलना पड़ रहा है।” मुख्यमंत्री मान

बाढ़ क्षति का मुआवज़ा जरूरी

भगवंत मान ने यह भी मांग की कि चूंकि नदी बाढ़ से सिर्फ़ पंजाब को नुकसान होता है, इसलिए साझेदार राज्यों को पंजाब को हर साल उचित मुआवज़ा देना चाहिए।

भविष्य की रणनीति और पुनर्विचार की ज़रूरत

मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा कि जल समझौतों की समीक्षा हर 25 वर्षों में अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि पंजाब, यमुना नदी का भी तटवर्ती राज्य है और इसे जल बंटवारे में नजरअंदाज करना अनुचित है।

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